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दौर है कैसा चला हुआ, बुद्धिजीवी बन जाने का,
समय किसी को कहाँ है अब, कोई गूढ़ रहस्य समझाने का,
चौड़ी छाती दिखा के अब, सब फेकन में है लगे हुए,
विरनता की थोथी बातें, करने में है अड़े हुए,
आन है सब में इतना, अब इस आन को छोड़ कौन बढेगा,
देखो हिन्दुस्तान गिरा है “कहो उठाने कौन झुकेगा”………१
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भंगुर अपना तंत्र हुआ, आसानी से गिर जाएगा,
तुच्छ – तुच्छ बातों पे देखो, लड़-लड़ ये मर जाएगा,
लोग सभी है साथ – साथ, आरक्षण की तलवार लिए,
लड़ाई हो रही है इसपे, की, घूंट जहर के कौन पिए,
जात – पात और जाती – धर्म के, प्रेत से बोलो कौन लड़ेगा,
देखो हिन्दुस्तान गिरा है “कहो उठाने कौन झुकेगा”………२
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हम है देखो बड़े हुए, इसके ही भूमि पे चलकर,
विश्वाश से हम है भरे हुए, इसके ही बाजू में पलकर,
हम उन्नत किस्म के बिज सही, पर फसल कहाँ उग पायेंगे,
गर अपनी ही धरती को हम, कालिख से धोतें जायेंगे,
धरती माता की रक्तों से, पूजा बोलो कौन करेगा,
देखो हिन्दुस्तान गिरा है “कहो उठाने कौन झुकेगा”………३
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हिंद अजेय है, हिंद विजय है, फिरभी जीते है डरकर,
आजादी को हमें दिलाया, कितने लोगों ने मरकर,
आज भी जंजीरों को देखो, किसने इसपे डाल दिया,
पाक रूप मिट्टी पर देखो, किसने कीचड़ डाल दिया,
हाँथ है सबके साफ़, यदि तो,हाँथ को गंदा कौन करेगा,
देखो हिन्दुस्तान गिरा है “कहो उठाने कौन झुकेगा”………४
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ANAND PRAVIN
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