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कहतें है “जल ही जीवन है” अगर ऐसा कहा गया है तो इसे सिद्ध करने की आश्यकता नहीं है क्योंकि हम खाने के बिना तो शायद कुछ दिन जी भी ले मगर पानी बिना कल्पना कर ही रूह काँप उठता है I
आज कल बिहार के ज्यादातर जिलों में एक गंभीर समस्या पैदा हो गई है ……
पानी के परत के निचे जाने की ……और यह गर्मियों में तो इतनी निचे चली जाती है की बहुत से पुराने हाँथ पम्प और कुँए बिलकुल सुख जाते है……
किंतु यह अचानक ऐसा क्यों हुआ की पिछले पांच से छः सालों में धीमें – धीमें यह समस्या गहराती ही चली जा रही है……
इसके कारणों पर अध्यन किया जाना चाहिए…..
आज बिहार सहित काफी राज्य जलवायु परिवर्तन से परेशानी का अनुभव कर रहें है…..जिसके कारण सबसे ज्यादा प्रभाव जल परिसंचरण तंत्र पर ही पड़ा है….
अब सवाल यह उठता है की क्या आज जल की इस समस्या का जिम्मेवार केवल जलवायु को ही ठहराया जाए या अपने कर्मो पर भी एक नजर डाली जाए……..ज़रा सोचेतें है………….
आज से करीब दस साल पहले आमूमन माध्यम वर्गीय परिवारों में साधारण बोडिंग की व्यवस्था हुआ करती थी………..कुओं पर आश्रय तो हम घटा ही रहें थे किंतु उनके स्थान पर हैंड पम्प पर ज्यादा जोड़ दे रहें थे ……….मुख्य रूप से दो प्रकार की व्यवस्था थी एक तो जिसे हम अपने भाषा में ठोका बोडिंग कहते है और दूसरी कुछ घरों में कटिंग बोडिंग ……..ये ऐसे सधारण सूत्र थे जिनसे सभी आसानी से अपना काम कर रहें थे……
किंतु तभी जन्म हुआ एक ऐसे विकराल दैत्य तंत्र का जिसने पृथ्वी को लगभग एक खुली चेतावनी दे डाली की चाहे पृथ्वी जल को कितना भी निचे रखे वो उसे निकाल लेगा ……..इसे हम समरसेवुल बोडिंग कहते है या ठेठ में कहें तो पाताल बोडिंग ……….
मनुष्य हमेसा से स्वार्थी भी रहा है और स्थाईत्व की तलाश में भी रहा है और जब बात बिजली पानी की हो तब तो वो किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है………….
यह रोग मुख्यतः व्यपारिक स्तर से चालु हुआ और जैसे – जैसे मनुष्य ने इसका मजा लेना आरंभ किया उसने इसे मुख्य धारा से जोड़ दिया ….और परिणाम स्वरूप हमें एक ऐसे व्यवस्था का आदि होना पड़ा जो आज हमें मजबूर किये हुए है ………..
शुरू-शुरू में कुछ घरों ने जब इसका उपयोग चालु किया तब उन्होंने पाया की वास्तव में जल की समस्या से उनको निजात मिल गई……..भले ही इसके लिए उनको मोटी रकम चुकानी पड़ी हो ……फिर जैसे – जैसे लोगों को पूरानी व्यवस्था के साथ छोटी मोटी भी समस्या आई उन्होंने भी इसी मार्ग को पकड़ना उचित समझा …………सूरत यह बन गई की ज्यादातर घरों में हमें यही दिखने लगा ……नतीजा …….नतीजा यह की जहाँ पानी अपने सतह से थोड़ी दुरी पर थी वह इसके कारण काफी निचे चली गई और मूल रूप से पुराने हैंड पम्प और कुओं को इस्तेमाल करने वालों को पानी की घोर समस्या आने लगी…….व्यवहारिक रूप से तो इसने हमें एक स्थाईत्व दिया….. किंतु जमीनी हकीकत यह की जो लोग गरीब थे और साधारण वर्ग के थे उनको एक जोरदार धक्का दिया गया ……
आज समरसेवुल बोडिंग का कास्ट लगभग लाख के आस पास आ ही जाता है ………….कई मध्यम वर्गीय परिवार तो निश्चय ही अपने स्थाईत्व के लिए यह करवा लेतें है………किंतु जो गरीब है उनके लिए इतने पैसे जुटाना आसान नहीं होता ……नतीजतन आज उन्हें मुख्य रूप से सरकारी पम्पों पर आश्रित होना पड़ रहा है …….जिनकी स्तिथि जगजाहिर है ……..
हमें आज ऐसे व्यवस्था का विरोध करना चाहिय क्यूंकि हम जिस प्रकार से इसका इस्तेमाल कर रहें है वो घातक है हम आसान सुविधा होने के कारण जल को पुरे प्रकार से बर्बाद कर रहें है ………भले ही हमें इसका इल्म ना हो और हम अनजाने में ही करते हों पर यह दुखद कार्य हमारे द्वारा ही हो रहा है …….इसके दोषी हम सब हैं ……..और हमें ही जागरूक होना होगा………याद रहे फिर से ‘जल ही जीवन है”……..और आने वाली पीढ़ी के लिए हमें इसे बचाना होगा अन्यथा निश्चय ही जल कोई महायुद्ध करवाएगा ………..जय हिंद
“एक छोटी सी कोशिश गरीबों के द्वारा जल का दुरूपयोग करने वालो को पैगाम “
“मेरा हिस्सा क्यों भरते हो”
क़द्र नही करते थे देखो, अब प्यासे – प्यासे फिरते हैं,
कितने प्राणी नित्य यहाँ, निर बिना घुट-घुट मरते हैं,
वसुधा ने तो उर में अपने, जल को देखो खूब छुपाया,
किंतु हम चालाक है इतने, हमने सीना छेद दिखाया,
अब तो देखो सरिताओं ने, भी हमसे मुख मोड़ लिया है,
छोटी – छोटी धाराओं में, खुद को देखो तोड़ लिया है,
मुद्रा जिनके पास है वो तो, अभी भी इनका सुख करते हैं,
किंतु जो लाचार पड़े हैं, निर बिना वो क्यों मरते हैं,
वो पूछ रहें जब धरा सभी का, जुल्म हमीं पे क्यों करते हो,
अपना तो सब गटक गए, फिर मेरा हिस्सा क्यों भरते हो (१)
……………
आज मनुज के जज्बातों में, कोई वेदना नहीं है दिखती,
अपने हित के आगे उनको, मौलिक संवेदना नहीं है दिखती,
खोद – खोद जल की खातिर, पाताल के निचे पहुँच गए हैं,
भले गरीबों के बच्चे, आकाल के मुंह तक पहुँच गए है,
माना जल ही जीवन है, और उसी लिए तो हम मरते हैं,
किंतु इसके संरक्षण की खातिर, कहाँ कभी आहें भरते हैं,
हमें भला आजू – बाजू के, दर्द से कोई क्या है लेना,
खोदो जितना खोद सको, माल तो केवल हमको देना,
उनमें उबाल आ रहा है देखो, ऐसे कृत्य अब क्यों करते हो,
अपना तो सब गटक गए, फिर मेरा हिस्सा क्यों भरते हो(२)
……………
सवाल बड़ा है क्या हम यूँही, जल को केवल वेस्ट करेंगे,
या मेहनत कर बचा के इसको, भविष्य में थोड़ा रेस्ट करेंगे,
सरकार भरोसे मत बैठो, सरकार तो केवल सोने को है,
लेट बहुत हम पहले से हैं, नहीं टाइम अब रोने को है,
हे मानव अब स्वार्थ को त्यागो, जियो सभी को जीने दो,
जीतने में हो काम उसे लो, बाकी गरीब को तो पिने दो,
याद रहे गर अब ना सुधरे, परिणाम भयानक आएगा,
नहीं मिलेगा जल पिने को, मानव मानव लड़ जाएगा,
इसी लिए कर जोर हूँ कहता, भगवान से भी न क्यों डरते हो,
अपना तो सब गटक गए, फिर मेरा हिस्सा क्यों भरते हो(३)
………..आनंद प्रवीन………..
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