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जागो लेखक जागो- एक आवाहन हमारी और आपकी

राजनीति
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हम लेखक है, हमें बौद्धिक क्रांति लाने का नेसर्गिक अधिकार है,
हम सोचतें है, लिखते है, कुछ करतें है, यह हमारी प्रतिभा है हम इसी को तो दर्शा रहें है, हमारे अन्दर एक तूफ़ान है जो परवान चढ़ना चाहता है, हम चाह रखते है कि हम जो लिखें उसे लोग समझे स्वीकार करें, हम कलम को सर्वोच्च समझते है I

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मैं भीख नहीं मांगूंगा — मुझे आवश्यकता नहीं है इसकी मैं लिखता हूँ या हम लिखतें है किसी से डर कर नही, हमारे अन्दर “निर्भीक भाव” छुपा हुआ है, जो यह कहता है कि “हम लिखेंगे” पर अपनी प्रतिभा दर्शाने के लिए भीख नहीं मांगेंगे I
मैं क्रांति लाना चाहता हूँ, अपने ही क्षेत्र में जहां लोग जरुरी तत्वों को छोड़ गैर जरुरी तत्वों को पढने में लगे हुए है,
मैं “दैनिक जागरण” का अनुभवहीन ही सही पर सक्रीय सदस्य हूँ जो देख रहा है कि अपार संभावनाओं के साथ भी हमारे लेखकगण आज भी परम मुकाम नहीं पा रहें I

ज़रा पढ़ें आदरणीय “शशि भूषण”जी , “वाहिद काशिवाशी”जी और “भ्रमर”जी कि कविताओं को ज़रा पढ़ें आदरणीय “निशा मित्तल”जी , “जवाहर सिंह”जी और “कृष्णश्री”जी के लेखों को और देखें फिर सोचें कि क्या अखबारों या पत्रिकाओं में आने वाले लेखों से कमतर भी है ये I
मैं उदाहरण दे किसी को छोटा नहीं करना चाहता क्यूंकि-

“अभी और है प्रकाश के स्तंभ इस क्षेत्र में, जो दिख रहें है वो तो इसके सूद के सामान है”
और जब सूद ही इतना है तो मूल तो आपके सोच के ऊपर होगा I
मैं लिखता हूँ, आप लिखतें है, हम सब लिखतें है एक सोच के साथ कि सराहे जाए और उत्त्कृष्ट मानसिकता के साथ कुछ जन चेतना ला सकें पर सकारात्मक अवसर नहीं मिल पा रहा I

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यहाँ दैनिक जागरण के मंच पर हमें एक आस दिखी कि शायद हम अपने को प्रस्तुत कर सकें पर यहाँ भी सब लग गए कमेन्ट युद्ध में, वास्तविक चीज आस्राहनीय रह गयी, कुछ लोगों कि कृतियाँ “दैनिक” ने अपने सम्पादकीय पृष्ट पर छापी पर वो किसी मजाक से ज्यादा कुछ नहीं था, क्यूंकि रोज दो लेखों का छपना वो भी आधा इनका सराहनीय प्रयास ना होकर बस प्रचार करने का साधन भर बन के रह गया है, जिसमें लेखों का चिरहरण हुआ प्रतीत होता है I
मैं जे जे पर कोई आरोप नहीं लगा रहां हूँ क्यूंकि उन्होंने कभी इस बात का दावा नहीं किया कि वो हमारे लेखों को छापेंगे I

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जे जे ने हमें एक मंच दिया पर वो हमें ढो नहीं पा रहा, तो सवाल यह उठता है कि क्या हम यूँही लिखते रहेंगे और थक जायेंगे या हम अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कुछ करेंगे, हम देश सुधारने के दावे करते है किंतु हम अपने आप को नहीं उठा पा रहें I
पर अन्धकार कितना भी हो उजाला तो लाना ही होगा और वह दिया हम ही लायेंगे, इसी मंच से आगे बढ़कर,
कैसे ज़रा सोचिये?????????

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मैं इस साल कि पहली तारीख से इस मंच से जुडा हूँ और मैंने देखा कि एक मंच यहाँ ऐसा भी है जो हमें आगे बढाने के बारे मैं सोचता है, वो है हमारा अपना
“संतोष कुमार” द्वारा संचालित “मुरख मंच”

मैं इस्सी कि बात कर रहा हूँ, मैं “आनंद प्रवीन” तथा “संतोष कुमार” हम दोनों कि सयुंक्त सोच है कि हमें आगे बढना है और उनको भी बढ़ाना है जो बढना चाहते हो जिनके अन्दर काबिलियत है जिनमें लगन है जो अच्छा लिखते है चाहे उनके लेख पर कमेन्ट मिलते हो या न मिलते हो I
(कमेन्ट कि बात पे मैं इसलिय जोर दे रहा हूँ कि इससे लोगों में प्रोत्साहन बढता है, कुछ दिनों पहले तक म प्र के निवासी “हरिहर नाथ शर्मा” जिनका ब्लॉग का नाम था “सोच – समझे तो तीर” कि कविता प्रकाशित होती थी क्या खूब लिखते थे वो किंतु बिना प्रोत्साहन के कब तक लिखते आखिर उन्होंने पोस्ट करना बंद कर दिया, ऐसे कितने लोग है जो अच्छा लिख रहें है पर पीछे है, और ऐसे कितने लोग है जो औसत लिख रहें है पर आगे है, हमें उन्हें निखारना होगा)

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इसके लिए हम सोच रहें है कि “मुरख मंच” नाम कि एक वेबसाइट बनाई जाए जिसमें उत्त्कृष्ट लेखक अपने लेख को लिखें, हम एक टीम बनाय जो यह फैसला कर सकें कि किस लेख को आगे करना है और किसे नहीं आपस में आच्छा लिखने कि होर हो ना कि जबरदस्ती कमेन्ट पाने कि I
अब आप सोच रहें होंगे कि इससे क्या होगा पोस्ट तो हम यहाँ भी करते है, तो होगा यह कि हम इसे आगे बढ़ाएंगे और शाहस दिखाते हुए अपना NGO बनायेंगे तथा साप्ताहिक पत्रिका छ्प्वाएंगे जिससें हमारी आवाज़ आम जन सुन सके I

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सुनने में और पढने में बरा अटपटा लगता है यह सब कि कौन करेगा, कैसे होगा, क्या यह संभव है, किंतु सच मानिए यह असंभव नहीं बस कोशिश सकारात्मक होनी चाहिए I
याद रखिये हम लेखक है, और एक लेखक कभी निराशावादी नहीं हो सकता I
मैं अपने इस लेख द्वारा आवाहन करता हूँ, कि जो भी मेरे साथ आगे बदना चाहते है वो आये अपनी कीमती सुझाव दे अपनी सक्रीय भूमिका दे, और इस विराट सपने को आकार दे हम हमारा मंच खुद बनाए और इसे संचालित भी करे I
इससे सम्बन्धी जानकारी देने के लिए मुझे मेल करे
anandpravin1986 @gmail.com पर तथा facebook द्वारा आप मुझसे जुड़े i
अंत में अपनी ही पन्तियों के साथ करना चाहूँगा –
“हो विश्वाश का साथ तो, विश्वाश संग आगे बढ़ो,
घबराओ मत किसी बात पे, अपने लिए आगे बढ़ो”

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