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मंजिल तुझे हवाएं देंगी “ओ राही”

राजनीति
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तुने सपना दिया जो जग को, उसकी उडती रोज है खिल्ली,
कुत्ते तो आपस में लड़ गएँ, दूध को आके पी गयी बिल्ली,
दूध नहीं तो ना ही सही, पर खून में तेरे पूरा दम है,
गुणों से तू है भड़ा पड़ा, उत्साह तेरा क्या किसी से कम है,
छाते के अभाव में भी तू, वर्षाऋतू काट रहा है,
ह्रदय को अपने कर विशाल, लोगों की पीड़ा बाँट रहा है,
इतना सबकुछ होने पर भी, तू ना रुकना बढ़ते चलना,
अँधकार “किल्विष” से डर कर, अपने पथ को नहीं बदलना,
दिखता नहीं जो सूरज, वो सूरज तुझे इशारे देंगी,
पथरीली राहों में देखो, फूल बिछा ये बहारे देंगी,
डरना मत तू जीतेगा रे “ओ राही”

मंजिल तुझे हवाएं देंगी “ओ राही”
“ओ राही” तू चलता ही चल,
“ओ राही”…………………..१

सड़क किनारे खड़ा-खड़ा तू, मचा रहा क्यूँ चिल्लम-चिल्ली,
बढ़ आगे की घटेगी दुरी, माना भले की दूर है दिल्ली,
दिल्ली से नारा जो देगा, जन-जन तेरी बात सुनेंगे,
सही – सही गर पहुँच गया तो, तुझमें वो विश्वाश बुनेंगे,
तुझको पीड़ा बहोत है, तेरे पैरों में भी छाल पड़े है,
मार्ग में कंटक लाने को, कितने “कुरु””शिशुपाल” खड़ें है,
किन्तु क़दमों को तू मलहम, लगा के अब विश्राम ना देना,
इतनी छोटी विजय पे, अपने आप को तू सम्मान ना देना,
दर्द यदि बढ़ता है तो, आराम तुझे अंगारे देंगी,
तप्त लाल लोहे सा जल जा, फौलाद बना नज़ारे देंगी,
बुझना ना तू जलते रहना “ओ राही”

मंजिल तुझे हवाएं देंगी “ओ राही”
“ओ राही” तू चलता ही चल,
“ओ राही”…………………..२

मशाल चाहिए अँधकार को, खोज एक लकड़ी की किल्ली,
आग यदि पैदा करनी है, कुर्बा तो होगी एक तिल्ली,
वो तिल्ली मिट जाए भले पर, चिंगारी तो दे जाएगी,
जीतेजी ना कह पायी जो, मर कर वो समझा जाएगी,
तुभी मिटने से ना डरना, अमर शहीद तू हो जाएगा,
भले मिले ना ख्याति तुझको, आत्मज्ञान तो पा जाएगा,
वीर नहीं पैदा होते है, ले लम्बी आयु वरदान,
महान वही कहलाते है, जो मुट्ठी में कर जाएँ जहान,
वेग से तू बढ़जाना की, तेरा तेज़ तुझे सहारे देंगी,
छूटेगी गर प्राण तेरी तो, जगह तुझे सितारे देंगी,
सांस तू अपने थामें रहना “ओ राही”

मंजिल तुझे हवाएं देंगी “ओ राही”

“ओ राही” तू चलता ही चल,
“ओ राही”…………………..३

ANAND PRAVIN

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