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नन्ही जान की अभिलाषा

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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आप सभी को बेटी के इस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ, और मेरी तरफ से बेटियों की अभिलाषा ,

“ कहते हैं सब के घर की लक्ष्मी हूँ मैं
ख्वाबो की महल सी पारी हूँ मैं
कोयल सी बोली के जैसी कूकी हूँ मैं
फूलों की खुशबू सी राहत हूँ मैं
ये कहते हैं दुनिया वाले दिल से सुनलीजिये
बेटी हूँ घर की तेरी मुझको स्वीकार कीजिये
क्यों कोसती हैं दुनियां मेरे जन्म में
कहा खो गए ये कहने वाले इन सब में
चुप मैं रह न सकी कुछ भी न कह सकी
जीवन की सरिता बन झील रही बह न सकी
कहती हूँ मैं इसे मन से सुन लीजिये
बेटी हूँ घर की तेरी मुझको स्वीकार कीजिये
रूठा मन राज हंस तुम तक पंहुचा होगा
लौट गयी द्वार आकार तुमने ठुकराया होगा
जंगल सी दुनिया में मैं कहा आकर फस गयी
या फिर ये दुनिया जंगल में आकर बस गयी
निकलती है फरियाद मेरी ठीक से सुन लीजिये
बेटी हूँ घर की तेरी मुझको स्वीकार कीजिये
कामयाबी अपनी इस दुनिया में किसे दिखाओगे
न रही बेटी अगर तो लक्ष्मी किसे कहलाओगे
ये सब तो ठीक हैं पर बेटा कैसे बनाओगे
अपने मन के पाप को अब तो निकल कर फेकदीजिये
मानवता की माया में खुद को मानव बना लीजिये
बेटी हूँ घर की तेरी मुझको स्वीकार कीजिये
बेटी हूँ घर की तेरी मुझको स्वीकार कीजिये || “

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