Menu
blogid : 12531 postid : 1369769

भारत के लोकतंत्र से दूर होता ”लोक”

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
  • 15 Posts
  • 42 Comments

लोकतंत्र का अर्थ होता है, जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा और भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, वास्तव में लोकतंत्र की ये अवधारणा अब सिर्फ पुस्तकों में ही सीमित रह चुकि है, क्योकि नेता अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए “लोक” को भूलते जा रहे है, भाषणबाजी और भ्रष्टाचार से परेशान लोगो को समयसीमा में कार्य ख़तम होने के अलावा सब प्रतीत होता है
यही कारण है की अभी हाल ही में हुए उपचुनाव जिसमे सिर्फ 38% मतदान हुआ है ये वास्तव में बहुत निराशाजनक परिणाम है और इससे ये प्रतीत होता है लोगो का नेताओ से भरोसा उठ ही गया है या फिर चाहे वो किसी भी पार्टी का चेहरा ही क्यों न हो| मतप्रतिशत मव नजर डाले तो ये बात सामने निकल के आती है की जिन 62% लोगो ने अपने मत का प्रयोग नहीं किआ वे निराशा का ही सामना कर रहे है, और जो 38% लोगो ने मतदान किआ है वे वास्तव में ध्रुवित हो चुके है, जो किसी नस किसी पार्टी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े है|
लोकतंत्र में इतना कम प्रतिशत मतदान यही संकेत करता है की “लोक” वास्तव में रूठ कर दूर होता प्रतीत हो रहा है|

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply