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बंद करिए जनता को मूर्ख बनाना

आपका पन्ना
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1993 से लेकर 2011 तक देश की आर्थिक राजधानी मुंबई ने 9 बार इंसानियत को छलनी कर देने वाले धमाके देखे हैं। आज़ाद भारत के इतिहास को देखें तो किसी एक ही शहर ने इतने दंश नहीं झेले हैं, जितने इस जीवंत शहर ने झेले हैं। इन धमाकों का शिकार कोई देश, प्रांत या शहर नहीं बल्कि इंसानियत होती है। धमाकों का शोर और धुंआ छटने के बाद आंसू, दुख, रक्तरंजित लाशें और कभी न भुलाया जा सकने वाला दर्द बचता है। दर्द किसी को खोने का, असमय किसी के चले जाने का।

इन सबसे इतर एक कौम और है, जो इस दर्द पर नमक रूपी मरहम लगाती रहती है और वो है नेताओं की कौम। वो नेता जो सरकार चलाते हैं, जिनके मातहत प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियां काम करती हैं, जो जनता को सुरक्षा का वादा देकर अपनी सुरक्षा का पूरा इंतजाम कर लेते हैं। ऐसे धमाके और हमले उन्हें नहीं हमें हताहत करते हैं।

न जाने क्यों, पर जब कल (13 जुलाई 2011) शाम को मुंबई में फिर से सिलसिलेवार धमाकों की खबर मिली तो 2008 वाली घटना की याद ताजा हो गई। मन में दुख और गुस्सा दोनों उठा। दुख उन बेकसूरों के लिए जिन्होंने बिना वजह अपनी जानें गंवाईं और गुस्सा उस नकारा तंत्र के लिए, जो हर बार ऐसी घटना के बाद अपनी झूठी और मक्कार जुबान से एक ही बात दोहराने के लिए तैयार हो जाता है। चाहे एनडीए की सरकार रही हो या फिर यूपीए की, जनता ने हमेशा सुरक्षा और विकास के बारे में सोचा है। यह अलग बात है कि सरकार नाम का रथ जिसे भी हांकने को मिलता है, वो केवल अपनी जेब और राजनीतिक हित ही देख पाता है। इससे आगे की उसकी दृष्टि कमजोर हो जाती है। शायद दिखाई भी न देता हो।

जिन्हें धमाका करना था, वो तो अपने मकसद में कामयाब हो गए, पीछे छोड़ गए नेताओं को, कुछ इस तरह के वक्तव्य देने के लिए मशहूर हैं “यह कायराना कदम है” “हम ऐसे हमले की निंदा करते हैं” “दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा” “हम अंतरराष्ट्रीय मंच के द्वारा पाकिस्तान पर दबाव बनाएंगे” “पाकिस्तान को आरोपियों की सूची औ सबूत दिए जाएंगे” “ऐसी घटनाओं से भारत डरने वाला नहीं है और मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा” “हमारी फौज हर तरह के हमलों के लिए तैयार है….” वगैरह-वगैरह। ये अलग बात है कि होता कुछ नहीं है। अगर वाकई कुछ होना होता तो बार-बार ऐसी घटनाएं होती ही क्यों?

देश के नेताओं की यह आदत बन चुकी है कि घटना होते ही तुरंत एक संगठन या देश पर आरोप मढ़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लो। बाकी जांच वांच के लिए तो दर्जनों एजेंसियां और विभाग हैं, जहां लोगों को कुर्सी तोड़ने और चापलूसी से फुरसत मिले तो शायद वो अपने काम के बारे में भी सोचें।

हमारा तंत्र “न कुछ करेंगे और न करने देंगे” की तर्ज पर काम करता है। संसद पर हमले के बाद सेना को हमले के लिए तैयार कर दिया गया, लेकिन आखिरी समय पर संयम का राग बजने लगा। इन हमलों के पीछे के चाहे पाकिस्तान आरोपी हो या फिर कोई पाक प्रायोजित आतंकी संगठन, वो अच्छी तरह जान चुके हैं कि भारत में कभी भी कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है। इसलिए जब भी एजेंसियां और पुलिस पुख्ता व्यवस्थाओं का दंभ भरने लगते हैं, तभी इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं। शायद ये देशवासियों को आईना दिखाने के लिए।

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