ये हैं संस्कृति के रक्षक
भागो आ गए संस्कृति के रक्षक। आपका सिर फोड़ेंगे, कपड़े फाड़ेंगे, हुड़दंग मचाएंगे और तोड़फोड़ करेंगे। होटलों में जबरन घुसना और मौका मिलते ही अपने हिस्से की दारू लेना इनका काम है। भई, संस्कृति के रक्षक हैं, तो इतना तो हक बनता है न इनका।
आपको याद होगा कि ऐसे ही कुछ संस्कृति के ठेकेदारों ने पिछले साल मुंबई में एक लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। इस साल भी ऐसी ही घिनौनी हरकत दोहराई गई। इनसे भले तो वे बलात्कारी हैं जो संस्कृति को बचाने का दावा तो नहीं करते हैं। समाज सुधार के नाम पर अपनी मनमर्जी चलाना कहां की आजादी है। धर्म के नाम गुंडागर्दी चलाने वाले इन संस्कृति सुधारकों ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। इनकी ऐसी हरकतों की तुलना तो तालिबानियों से की जाए तो गलत नहीं होगा।
एक तरफ तो हम कहते हैं कि हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और हर नागरिक को अपने फैसले लेने का हक है, तो फिर यह क्या था जो कल रात हुआ और पिछले साल भी हुआ था। क्या यह माना जाए कि लोकतंत्र इन तथाकथित संस्कृति के ठेकेदारों के इशारे पर चलता है। किसने इन्हे यह अधिकार दिया कि वे संस्कृति की रक्षा के नाम पर उसे नंगा करने का प्रयास करें।
देश के युवाऒं में इन्हें रोकने का माद्दा है और इस अन्याय के खिलाफ इन्हे ही आगे आना होगा। वरना ये ठेकेदार कब संस्कृति को तार-तार कर देंगे इसका पता भी नहीं चलेगा।
ग्राफिक्स : रवि लिहनकर
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