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जब भी स्त्री किसी व्यक्ति के साथ शादी या प्रेम संबंध में बंधती है तो उसके लिए एक आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला जुमला है “वह किसी और की हो गई.” यह खतरनाक रूप से स्त्री की अस्मिता को चोट पहुंचाने की मर्दवादी समाज की कोशिश का एक मुजाहिरा है. इस तरह के और भी अनेक जुमले मौजूद हैं जो अकसर स्त्री को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं जिनका नारियों की ओर से विरोध किया जाना जरूरी है अन्यथा उन्हें पुरुषों की गुलामी से कभी मुक्ति नहीं पाएगी.
वैसे तो दुनिया के हर समाजों में शुरू से ही महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ रखने की सर्वस्वीकृत परंपरा को सुचारु रूप से चलाया जा रहा है लेकिन पता नहीं क्यों हम कथित नारीवादियों के बहकावे में आकर महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके उत्थान जैसी मनगढ़ंत बातों पर विश्वास कर बैठते हैं.
अभी हाल ही में प्रख्यात अभिनेता धर्मेंद्र की पुत्री ईशा के विवाह से जुड़ी खबरें समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों की सुर्खियां बटोर रही थीं. इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि सभी का बस यही कहना था कि आज एशा किसी और की हो जाएंगी. देखने और सुनने में यह वाक्य सामान्य लगता है लेकिन अगर इसके निहितार्थों पर नजर डाली जाए तो नारियों के तथाकथित परिमार्जित होते हालातों की पोल भी स्वत: ही खुल जाती है.
ईशा का किसी और का हो जाना यह प्रमाणित करता है कि महिलाओं को केवल एक वस्तु की भांति समझा जाता है जो आज किसी के हाथ में हैं और कल किसी और के पास चली जाएंगी. क्या महिलाओं की अपनी कोई पहचान और अपना कोई अस्तित्व नहीं है? विवाह तो पुरुष का भी होता है लेकिन कभी उनके विषय में तो ऐसा नहीं कहा जाता. जिस प्रकार कोई चीज या वस्तु एक हाथ से दूसरे हाथ तक आती-जाती रहती है वैसे ही महिलाएं भी अपना स्थान बदलती रहती हैं. उनके पिता उन्हें पराया धन कहते हैं और ससुराल वाले दूसरे घर से आई लड़की. ऐसे में उनकी अपनी पहचान कहां रह जाती है?
यहां मेरा विरोध इस वाक्यांश से है. यदि इसी बात को कहा जाता कि ईशा की शादी हो जाएगी या ईशा और भरत विवाह बंधन में बंध जाएंगे तो कोई समस्या नहीं होती किंतु यहां इस तरह से कहना कि ईशा किसी और की हो जाएंगी, पूरी तरह नारी जाति का अपमान है. यह ये साबित करता है कि पुरुष हमेशा स्त्री को एक दासी की नजर से देखता है या उससे भी बुरे रूप में और उसकी निगाह में स्त्री की कीमत एक सामान से ज्यादा नहीं. स्त्रियों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले इस तरह के वाक्यांशों के मर्म को स्त्रियों को समझना ही होगा अन्यथा उनकी स्थिति हमेशा दोयम दर्ज़े की ही रहेगी.
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