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कांग्रेसी रणनीति के मोहरे अन्ना हजारे एंड टीम

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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देश के साथ विश्वासघात और राजनीति की कुटिलता की पुष्टि करते हुए अन्ना हजारे एंड टीम ने कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी निभाने में कोई भूल-चूक नहीं की. ऐन वक्त पर जब लगने लगा कि कहीं सारे किए कराए का श्रेय भारतीय जनता पार्टी ना ले जाए तो कांग्रेस के रणनीतिकार तुरंत सतर्क हुए और अन्ना टीम को आदेश दिया कि अब अनशन खत्म करने का समय आ गया. माननीय अन्ना हजारे जी जो कांग्रेस की नीति को अंजाम दे रहे थे वे भी गत दिनों की कथित नाराजगी छोड़कर तुरंत अनशन भंग करने की मुद्रा में आ गए. मीडिया जो कि लगातार कांग्रेस की नीति को आगे बढ़ा रही थी वह भी प्रचार करने में लग गयी कि “जनता जीत गयी”, “जनमत की विजय हुई”.


यकीनन इससे बड़ी राजनीति क्या हो सकती है कि कांग्रेस स्वयं अपने विरुद्ध आंदोलन संचालित करे और उसका रुख अपने विरोध में जाने से पूर्व ही आंदोलन समेट ले. गत दिनों के हालातों को ध्यान से देखें तो बात ज्यादा ठीक से समझ में आती है. कई बार ये लगता था कि आखिर क्यों कांग्रेस के वयोवृद्ध चाणक्य पागल हो गए है जो अपनी ही सरकार की छवि धूमिल करने के प्रयास में हैं. क्या उनके अंदर इतनी भी समझ नहीं रह गयी कि वे अन्ना हजारे के आंदोलन को ना तो रोक पा रहे हैं और ना ही सरकार को स्थिति स्पष्ट करने दे रहे हैं. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. शायद वे युवराज के ताजपोशी के सही समय का इंतजार कर रहे हैं और देश का माहौल सत्ता हस्तांतरण के लिए उपयुक्त बना रहे हैं.


आपने देखा होगा कि बाबा रामदेव के आंदोलन को जबरन खत्म कर दिया गया. अन्ना टीम ने भी रामदेव को कोई महत्व नहीं दिया. क्या इससे संकेत नही मिलता कि रामदेव का आंदोलन विपक्ष द्वारा प्रायोजित था और कांग्रेस कैसे अपने आंदोलन की रणनीति को विपक्ष के हाथ में जाने देती. फलतः रामदेव को बुरी तरह बदनाम भी किया ताकि वे दुबारा हिम्मत ना जुटा सकें. बाबा जी भी डर कर हरिद्वार चले गए और पुनः राजनीति छोड़ योग सिखाने लगे. लेकिन अन्ना टीम के आगे वही सरकार भीगी बिल्ली जैसा बर्ताव करती दिखी.


कांग्रेस एक बात अच्छी तरह जानती है कि उसे सरकार को भी बदनाम नहीं करना है लेकिन मनमोहन को सत्ता से बेदखल करना ही है. तभी युवराज राहुल को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है. लेकिन इस दरमियान ये ध्यान रखना जरूरी है कि देश-विदेश में ये संदेश ना जाए कि राहुल को पदस्थ कराने के लिए मनमोहन को हटाया गया है. साथ ही ये भी संदेश नहीं जाना चाहिए कि मनमोहन पूरी तरह रिमोट चालित हैं. इसके लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि आंदोलन चलाओ और अंततः मनमोहन को हटाने का माहौल तैयार करो.


मुझे अभी तक के पूरे मंजर को देखने के बात ये बात समझ में आती है कि टीम अन्ना और अन्ना हजारे जल्द ही पुनः आंदोलन के अगले चरण की शुरुआत करेंगे और आखिरकार बेचारे मनमोहन को बलि का बकरा बना ही दिया जाएगा. और आखिर में बेचारी जनता तो …………………..!

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