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मैं एक लड़की हूं, तेज भागती जिंदगी में मैंने वो सब हासिल कर लिया जो हर सुखी इंसान को चाहिए होता है, हर कुछ यानी ऐसा सब जिस पर आज की नारी गर्व कर अपने आप को सुखी समझती है.
जिंदगी को अपनी मर्जी से जीने की चाहत में मैंने किसी भी सीमा को नहीं माना और शायद आज भी नहीं मानती हूं. भौतिक सुखों की कोई कमीं नहीं मुझको, विलासिता के हर साधन मेरे कदमों में लोटते हैं.
मेट्रो की तेज रफ्तार भागती जिंदगी में हर पल खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में जीना किसे कहते हैं ये भी भूल गयी मैं. वक्त गुजरता रहा और खुद को तसल्ली देती रही कि कभी ना कभी मैं भी उस सुख का वरण कर लूंगी जो अमूमन अप्राप्य है.
पर,…. इच्छा कभी पूरी होती है क्या और तिस पर ऐसी इच्छा जो अपने पूरे होने के पीछे कुछ समर्पण मांगती है. आखिरकार यही हुआ और मेरी इच्छा सिर्फ इच्छा बन के रह गयी है.
आज तक मैं उन्हीं चुनौतियों से जूझ रही हूं जिन पर विजय प्राप्त कर लेने का हार्दिक उत्साह था मुझमें.
और फिर भी मैं आशा करती हूं कि कभी ना कभी मैं जरूर उस अतृप्त अभिलाषा को प्राप्त कर अपने को सर्वविजयिनी समझ सकूंगी.
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