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बलात्कारी की सजा क्रूरतम होनी चाहिए – Jagran Junction Forum

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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बहुत दिनों बाद जागरण जंक्शन मंच पर आना हुआ तो काफी कुछ बदला-बदला सा पा रही हूं. इस नई पहल यानि फोरम की शुरुआत तो मेरे लिए काफी सुखद है. संयोग से आज मुझे ऐसा विषय दिखा जिस पर लिखना मुझे जरूरी लग रहा है सो मैं अपने सभी चाहने वालों के लिए “बलात्कारी के साथ क्या सलूक किया जाए” पर अपने विचार लिखना चाहती हूं.


मेरी नजर में किसी को अपनी वासना का शिकार बनाना दुनियां का सबसे भयानक अपराध है क्यूंकि अपराधी तो उसके बाद भी ना जाने कितनों को शिकार बनाता घूमता फिर रहा होता है लेकिन हवस की शिकार बनी बच्ची या नारी को जीवन भर का संत्रास झेलना पड़ता है. कई बार पीड़िता समाज की उपेक्षा बर्दाश्त करने में इतनी अक्षम हो जाती है कि उसे तंग आकर आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर विवश होना पड़ता है.


मैं एक घटना आपको बताना चाहती हूं जिसको जानकर आप खुद ही निर्णय ले सकेंगे कि बलात्कारियों को किस प्रकार का दंड दिया जाए ताकि इस तरह के के अपराधों में प्रभावी कमी लाई जा सके. मुझे यकायक लखनऊ के आलमबाग के एक परिवार की 16 वर्षीया मासूम के साथ हुए हादसे की याद ताजा हो चली है. उस मासूम का नाम तो नहीं लेना चाहती मैं इसलिए आप से उम्मीद करुंगी कि आप बिना नाम के ही घटना समझ सकें और उसके मर्म से वाकिफ हो सकें.


हर शाम उसे कॉलोनी की गलियों में टहलने का शौक था इसलिए वह अपने प्यारे पपी के साथ बस यूं ही निकल लेती थी. हंसती-खिलखिलाती, कॉलोनी के लोगों का हाल-चाल पूछते हुए वापस अपने घर आना उसकी दिनचर्या में शामिल था. वो दिन उसके लिए बहुत शानदार हुआ करते थे लेकिन उसे क्या पता था कि किसी की बुरी नीयत की शिकार हो जाएगी और अपनी सारी खुशियां गंवा बैठेगी. उस मनहूस शाम को अचानक एक वैन में सवार चार दरिंदे उसे पकड़ कर ले गए और फिर तीन दिनों बाद जब वह वापस अपने घर आई तो उसकी हालत उसके साथ हुए वाकये की कहानी बयां करने के लिए काफी थी. उसका पूरा शरीर चिथड़ों में तब्दील हो चुका था, उसके बदन पर जगह-जगह सिगरेट से जलाए गए निशान मौजूद थे, उसके होठ काट डाले गए थे, पूरा शरीर दरिंदगी से नोचा-खसोटा गया था. मैं उसके यहॉ अकसर जाती थी इसलिए सोचा कि उसे कुछ तो सांत्वना दे ही सकती हूं. यही सोचकर उससे मिली लेकिन उसकी पथराई आंखें देखकर उसे दिलासा देने की हिम्मत ना जुटा सकी.


इस घटना के कुछ दिनों बाद चारो बलात्कारी पकड़े गए जो मुहल्ले के छंटे हुए अपराधी थे. अदालत में पेशी हुई लेकिन अपने असर के कारण जमानत पर बाहर आ गए. उन्होंने उसके बाद भी जब-तब उस मासूम को परेशान करने की कोशिश की जिससे तंग आकर आखिरकार उसने आत्महत्या कर ली.


इतना सब होने के बावजूद भी कानून सोता रहा, समाज मूर्छा में पड़ा रहा, बौद्धिक अपना राग अलापते रहे, मानवाधिकारवादी अपराधियों के साथ नरमी से पेश आने की वकालत में लगे रहे. लेकिन किसी का ध्यान उस मासूम लड़की के अधिकार, उसके सम्मान, उसकी जिंदगी की तरफ नहीं गया. हॉ, जिन्होंने उसकी तरफ सहानुभूति दिखानी चाही उनका उद्देश्य दूषित था. वे सहानुभूति के बदले कुछ और की कामना करते थे. इतना ही नहीं, समाज के कई भेड़िए उस लड़की को आसानी से हासिल हो जाने वाली वस्तु समझ कर उसके साथ गंदगी से पेश आने लगे थे जिसने उसे मानसिक तौर पर पूरी तरह तोड़ दिया.


मेरा इतना कहने का अर्थ केवल यह समझाना है कि कुछ बलात्कारियों की कुत्सित मनोवृत्ति का शिकार जीवन भर के लिए अभिशापित हो जाता है और उसकी जिंदगी ही उसके लिए सबसे बड़ी सजा हो जाती है. बलात्कार एक तरह से किसी की हत्या से ज्यादा दंडनीय होनी चाहिए और अपराधी की सजा इतनी भयानक होनी चाहिए कि फिर कोई किसी मासूम के साथ ऐसा करने की सपने में भी ना सोच सके. मुझे जज कामिनी लॉ की बातों से पूरी सहमति है कि बलात्कारी को नपुंसक बना दिया जाए ताकि औरों को भी सबक मिल सके. आखिरकार किसी की जिंदगी बर्बाद कर देने वाले को किस आधार पर बख्शा जाए ये फिलहाल मेरी समझ में तो नहीं आती. आप भी अपने विचार इस मसले पर दें तो शायद स्थिति कुछ और बेहतर तरीके से साफ हो.

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