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मर्दों की वासना को प्रेम समझती बेचारी नारी

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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बहुत सोचा कि लिखूं या ना लिखूं लेकिन दिल ने कहा कि आज लिख ही डालूं मन की बात. कई बार पहले भी सोची थी कि लिख ही देनी चाहिए लेकिन जंक्शन के लोगों के विचार इतने रुढ़िवादी लगे कि मुझे ना लिखने में ही भलाई नजर आई. फिर भी आज मैं सारा संकोच छोड़ कर एक सच लिख रही हूं जिससे सारा मर्द समाज बेपरदा हो जाएगा.


स्त्री-पुरुष के बीच जब प्रेम होता है तो कुछ बातें निश्चित रूप से घटित होती है. जैसे कि स्त्री तो वास्तविक रूप से प्रेम में होती है जबकि पुरुष प्रेम में होने का दिखावा करता है. स्त्री का प्रेम वासना रहित, शुद्ध, सात्विक और दैविक होता है. स्त्री बिना किसी मांग के केवल प्रेम से मतलब रखती है. उसे बदले में कुछ चाह की आस नहीं होती है बल्कि वह सिर्फ देने में भरोसा रखती है. मर्द की खुशी के लिए स्त्री सर्वस्व समर्पण कर देती है. ऐसा आज से नहीं सदियों से होता चला आया है.


लेकिन इसके ठीक उलट पुरुष के प्रेम की जब बात आती है तो वहां सिर्फ धोखा मिलता है. पुरुष छलना जानता है, मूर्ख बनाना जानता है, अपनी पाशविक वृत्ति के अनुरूप वह स्त्री को प्रेम के प्रतिदान के रूप में सिर्फ प्रताड़ना देता है. मूल रूप से पुरुष स्त्री को केवल उपभोग करता है, उसे अपनी वासना पूर्ति का माध्यम बनाता है. हॉ, ये जरूर है कि अकसर वह बड़ी चालाकी से इसे छुपा लेता है ताकि उसके भोग के रास्ते में कोई रुकावट ना पैदा हो.


अभी एक घटना मुझे याद आ रही है जिसने ये साबित कर दिया कि पुरुष सिर्फ वासनामय प्रेम ही करते हैं और इसके पीछे उनकी अत्याधिक स्वार्थ वाली प्रवृत्ति जिम्मेदार है. मेरी एक दोस्त, जिसने अपने कॅरियर में काफी ऊंचाई प्राप्त की है, वह केवल किसी मर्द के वासनामय रवैये की शिकार बन कर आज  यातनापूर्ण जीवन जी रही है. एक हाई प्रोफाइल कॅरियर और लाइफस्टाइल से संबद्ध होने के बावजूद उसने जिस पुरुष को अपने प्रेम पात्र के रूप में चुना था उसी ने उसकी जिंदगी में कड़वाहट घोल दी. जबकि मेरी दोस्त उसे सर्वस्व समर्पित कर चुकी थी इसके बावजूद उसके प्रेमी ने उसे सिर्फ भोग का जरिया माना इससे ज्यादा और कुछ नहीं. यहॉ तक कि मेरी फ्रेंड उसके लिए अपना कॅरियर और अपने सारे शौक छोड़ने को तैयार थी लेकिन उस स्वार्थी व्यक्ति ने उसे भोगने के बाद उससे नाता ही खत्म कर लिया.


और ये कोई ऐसा अकेला उदाहरण नहीं है जहॉ पर मर्दों ने स्त्रियों को छला हो. ऐसी घटनाएं तो आम हैं जहॉ पर स्त्रियां पुरुष पर भरोसा करके उन्हें अपना सब कुछ मान बैठती हैं जबकि पुरुष केवल उन्हें अपनी वासनापूर्ति का माध्यम बनाते हैं. फिर भी ऐसा क्यूं है कि स्त्री आज तक पुरुष के छल और धोखे को समझ नहीं सकी. तमाम ऐसी स्त्रियां हैं जो पुरुष को आज भी भगवान की तरह पूजती हैं और उन पर आंख बंद करके विश्वास करती हैं. उन्हें यदि समझाने की कोशिश भी जाए तो वे नहीं समझने वाली बल्कि वे आप पर ही तोहमत लगाना शुरू कर देंगी. इसके पीछे का सच यही जान पड़ता है कि स्त्री मानसिक तौर पर गुलाम है और ये गुलामी एक दिन में नहीं बल्कि हजारों वर्षों में लिखी गई है. इसलिए शायद ही इस परिदृश्य में कोई सुधार जल्द हो पाए.


इतना जरूर है कि जिस दिन स्त्री को ये सच पता चल गया, जिस दिन उसे ये एहसास हो गया कि आज तक वह केवल पुरुष पर विश्वास करने के कारण ही इतनी यंत्रणा भोगती रही है उसी दिन से उसका कायाकल्प होने लगेगा.

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