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हर बार स्त्री ही दोषी क्यों ठहराई जाती है ?

अकेली जिंदगी की दास्तां
अकेली जिंदगी की दास्तां
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स्त्री सदा ही मर्दों की वासना का शिकार बनती रही है. स्त्री को हमेशा भोग की वस्तु ही माना गया और जब चाहे, जैसे चाहे मर्दों ने उसे कुचला, मसला. स्त्री कामवासना से पीड़ित मर्दों के लिए हमेशा मनोरंजन की वह सामग्री बनी रही जिसकी जरूरत केवल भूख लगने पर होती है. क्या स्त्रियां कभी भी अपने साथ हो रहे इस भयानक अत्याचार को समझ सकेंगी?


सदियों से नारी के दमन और शोषण का सिलसिला चलता आ रहा है. हर युग, हर काल, हर दौर में महिलाओं का पुरुषों द्वारा शोषण किया गया है. कभी प्रेम की आड़ में तो कभी महिला के हितों का नाम देकर नारी को सिर्फ और सिर्फ अपनी इच्छानुरूप उपयोग करने को ही प्रधानता दी गई है. यह सिलसिला बेरोकटोक और शायद समाज की रजामंदी से आज भी निरंतर जारी है.


सोचा था समय बदलने और आधुनिकता के प्रभाव के कारण महिलाओं के साथ होते अपराधों में कमी आएगी लेकिन चालाक पुरुष समाज इसी आधुनिकता को अपना हथियार बना कर नारी के दोहन के सिलसिले को बढ़ा रहा है. पढ़ी-लिखी और आधुनिक महिलाएं भी शातिर पुरुषों के झांसे में आने लगी हैं.


23 वर्षीय गीतिका का गोपाल कांडा नाम के एक हाई-प्रोफाइल राजनेता के दिनोंदिन बढ़ते शोषण से तंग आकर खुद ही अपने ही जीवन का अंत कर लेना यह साफ प्रमाणित करता है कि शोषण करने के आदी हो चुके पुरुष किस कदर मासूम और भोली-भाली महिला का एक वस्तु की भांति उपयोग करते हैं.


लेकिन विडंबना तो यह है कि जिस लड़की ने जुल्मों सितम से त्रस्त आकर अपने ही प्राण गंवा दिए आज समाज उसे ही दोषी ठहराने से बाज नहीं आ रहा है. गीतिका आधुनिक विचारों वाली एक महत्वाकांक्षी लड़की थी, लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या महिला की महत्वाकांक्षा किसी पुरुष को उसके साथ अन्याय करने और उसका शारीरिक शोषण करने की अनुमति देती है?


गोपाल कांडा ने गीतिका को पहले अपने झूठे प्रेम के जाल में फांसा और मनचाहे ढंग से उसका शोषण किया. कई बार उसका गर्भपात भी करवाया गया. लेकिन जब प्रेम और दर्द के इस रास्ते पर चलना गीतिका के लिए मुश्किल हो गया तो उसने अपने ही जीवन को समाप्त करना ही बेहतर समझा.


जिस देश में प्रेम को पूजा का दर्जा दिया जाता है वहां एक लड़की का प्रेम करना इतना बड़ा अपराध कैसे हो गया कि उसे अपने ही जीवन को त्यागना पड़ा और हैरानी तो इस बात की है जिसके साथ अत्याचार हुआ उसे ही अपराधी बना दिया इस समाज ने.


पुरुषों के आधिपत्य वाले इस समाज में महिलाओं के दमन को हमेशा तरजीह दी जाती है लेकिन अब टीआरपी के खेल में मीडिया भी संवेदनाओं को पीछे छोड़ अपने फायदे के लिए गीतिका हत्याकांड को मनचाहे ढंग से भुना रही है. वह एक ऐसी लड़की को कटघरे में खड़ा कर रही है जिसे प्रेम में धोखे के अलावा और कुछ नहीं मिला. कांडा ने उसकी महत्वाकांक्षाओं को जरिया बनाकर उसका भरपूर शोषण किया और जब दर्द की इंतहा हो गई तो बेचारी नारी ने खुद को समाप्त कर लिया. यह सब होने के बावजूद जब यह सवाल आता है कि अपराध किसका? तो समाज द्वारा स्त्री को ही क्यों दोषी करार दिया जाता है?


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