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COVID-19 : सरकार के प्रयास और हमारे विचार

ankitsrivastava
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कभी कभी लगता है भारतीयों का राष्ट्रीय चरित्र चुनना हो तो क्या चुना जा सकता है। शायद आप गलत सोच रहे है ।ईमानदारी, देशभक्ति,बेईमानी ,नहीं इस बात पर में निर्विरोध जीत जाऊंगा की भारतीयों का राष्ट्रीय चाल चरित्र ‘राजनीति’ है।

 

 

हमारे अंदर राजनीति इतनी गहराई तक बैठ गई है कि शरीर का हर कण को अगर विश्लेषण कर के देखा जाए तो कुछ ना कुछ प्रपंच करते मिल जाएंगे।चुनाव जीते तो पोलराइजेशन, हरे तो भी पोलराइजेशन या आजकल ईवीएम, किसी परीक्षा में गलती से पास हो जाए तो जी तोड़ मेहनत,फेल तो पेपर में गड़बड़ी,नौकरी में तरक्की मिले तो बॉस का चमचा और ना मिले तो सहकर्मियों कि शाजिश। ऐसी ही अनेकों मिसाले। कई बार ये सच भी होती है पर ज्यादातर सिर्फ राजनीति।सच का सरलता से सामना करना जैसा की वो है, मैंने बहुत कम लोगों में देखा है।

 

 

हम या तो इतने मूर्ख है कि कुछ समझ नहीं आता, या इतने ज्यादा राजनीति में लिप्त और खुदगर्ज है कि सिर्फ वो मानना चाहते है जो हमारे या हमारी राजनीति के पक्ष में हो। उसके आगे हमें कुछ सुनाई या दिखाई नहीं देता। अब वर्तमान हालात को देख लीजिए ,सच ये है कि “कोरोना वायरस बेहद ही खतरनाक तरीके से पूरी दुनिया में फ़ैल चुका है और इसका कोई इलाज नहीं है, इसके हो जाने पर केवल आपके इम्यूनिटी पर निर्भर करता है कि आप इससे बचेंगे या नहीं, और इससे बचाओ ही सिर्फ और सिर्फ इससे बचने का तरीका है”

 

 

अब इसका विश्लेषण करते है, इस विपदा में भी भारतीय मुख्यता तीन तबकों में बट चुके है, पहला ,सरकार द्वारा उठाया गया कदम बिकुल जायज है, अगर आज मोदी नहीं होते तो देश बर्बाद हो जाता। दूसरा तबका, लॉकडाउन सही तो है, पर ज्यादा है, लोगो की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा, चाय दिन में एक ही बार मिल रही, और घर में बैठे बैठे गैस बन रही, कोई और सरकार होती तो इससे बेहतर तरीके से निपटती। तीसरा तबका जो मुख्यता बुद्धिजीवी तपका है, सरकार नाकारी है,सबपे जुल्म ढ़ा रही, बेरोजगारी बढ़ेगी, इकोनॉमी गिर जाएगी, सब मिट्टी में मिल जायेगा,बेवजह लोगो को खासकर गरीबों,पिछड़ों को परेशान किया जा रहा है, नुकसान को सिर्फ हम ही क्यों सहे। जो इन तीनों तबके में से नहीं है वो बहुत कम मंत्रा में है।

 

 

अगर तीनों तबकों को ध्यान से देखे और सोचे तो हसी और दुख दोनों होता है। सच का सामना कोई करना चाह नहीं रहा या कर पा नहीं रहे ये भी एक सवाल ही है। थोड़े सच से मै वाकिफ करता हूं: कोरोनो वायरस अब भारत में लगभग तीसरे स्टेज पर है, यानी कि अब ये बहुत बुरी तरह फ़ैल चुका हैं, भारत के पास इतने संसाधन नहीं है कि इस बीमारी से एक साथ निपट सके ,भारत में लगभग 7 लाख हॉस्पिटल बेड, 70 हजार ICU बेड,11.5 लाख ट्रेंड डॉक्टर, 20 लाख नर्से है, “ऊपर से इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। “अब ये गणित का बहुत सरल सवाल है कि अगर ये बीमारी पूरे देश के 135 करोड़ लोगों में फ़ैल गई तो प्रति व्यक्ति क्या सुविधा मिल सकती है? इसका उत्तर आप खुद निकाल ले।

 

 

मेरा पहला मुद्दा ये है कि क्या इस समय सिर्फ राहत पैकेज से इस विकट समस्या को हराया जा सकता है? अगर इसका उत्तर हा है तो अमरीका,इटली, साउथ कोरिया,स्पेन की स्टेटस उठा के देख लीजिए, इटली दुनिया का दूसरा सबसे संपन्न हैल्थ सर्विसेज वाला देश है और साउथ कोरिया भी टॉप 10 में आता है। जिस तेजी से ये बीमारी फ़ैल रही उस समय सिर्फ पैसे से काबू नहीं किया जा सकता,ठीक उसी प्रकार जैसे जब तूफान आता है तो समझदारी उससे बचने की होती है, अपने घरों में छुपने कि होती है, उसके कमजोर पड़ने का इंतजार किया जाता है, तूफान में खड़े होकर पैसे खर्च कर उसे रोकने के लिए इमारतें नहीं बनाई जाती।

 

 

दूसरा मुद्दा, क्या सिर्फ केंद्र सरकार ही इसे हल कर सकती है, दूसरी कोई सरकार इसका निवारण नहीं कर सकती?
इसपे, मेरा मानना है कि मोदीजी ने बहुत सही समय पे देश के सामने ये स्वीकार किया की मौजूदा स्वास्थ व्यवस्था से देश इस महामारी से निपटने में असक्षम है, सरकार से जो बन पड़ेगा वो करेंगे, पर अपने आप और अपने परिवार को बचाने में हमें खुद जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी और घरों में बंद रहना पड़ेगा और तूफान के हल्का होने का इंतजार करना। मै समझता हूं कि दुनिया का कोई भी देश जिसके जनसंख्या इतनी हो और संसाधन अत्यधिक कम, उसके लिए इसके सिवा कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। आप अपने देश कि सारी पुजी भी लगा देंगे तो भी एक लाइलाज बीमारी का इतने कम समय में इलाज नहीं ढूंढ़ पाएंगे और अगर ढूंढ़ लिए तब तक देश पूरी तरह इस बीमारी से जकड़ चुका होगा।

 

 

ये भयंकर आपदा है, वो भी अभूतपूर्व। ये कोई लॉ ऑर्डर की वजह से लगाया गया कर्फ्यू नहीं, सबकी जान बचाने के लिए एक मात्र उपाय है। सबसे पहले अपनी और अपने परिवार की जान बचाने का सोचिए। जो मिले जैसा मिले खा लीजिए,ये समय सुविधाओ का नहीं, बस ज़िंदा बचे रहने का लड़ाई है। और अगर कुछ समय बाद जब सब सामान्य हो जाए और जीवित रह गए तब अर्थव्यवस्था, जीडीपी, सरकार के निर्णय की समीक्षा कर लीजिएगा।

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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