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युद्ध : जरूरत या इच्छा?

ankitsrivastava
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ज़रूरत और इच्छा में उतना ही फर्क है जितना जल और कोल्डड्रिंक में होता है। जल ज़िन्दगी की ज़रूरत है परन्तु कोलड्रिंक हमारी मन की इच्छा !
वर्तमान दुनिया में शायाद ही ऐसे मनुष्य होंगे जिनको युद्ध में मज़ा आता है या उसे युद्ध की इच्छा हो। बेवजह मारना मारना इंसानों की आदत नहीं ,पर क्या ये जंग हमेशा ही गलत होती है? क्या सारे मसलो को बिना लड़े सुलझाया जा सकता है?

महाभारत में श्री कृष्ण काफी लंबे समय से युद्ध टालना चाह रहे थे,मगर हालात ऐसे हो गए कि अब युद्ध नहीं टाला जा सकता था। अर्जुन जब अपने सामने अपने ही भाई बन्धु को देख के युद्ध करने से भयभीत हो गए कि इसमें बहुत खून खराबा है और वो बेवजह किसी को नहीं मार सकते और शांति से जंगलों में जीवन बिता सकते है,तो श्री कृष्ण उन्हें छत्रिय(सैनिक)धर्म का पाठ पढ़ाया, छत्रिए किसी जाति का नाम नहीं था बल्कि सेना में काम करने वाला एक वर्ग था जिसका काम अपने समाज का संतुलन बनाए रखना था।

 

 

आज हमारे सामने कुछ ऐसे ही परिस्थिति है,हम पिछले कई दशकों से अपना आत्मसम्मान लूटा कर पूर्ण युद्ध को टालते आ रहे है,और हमारा पड़ोसी मुल्क इसका भरपूर फायदा उठा रहा है क्योंकि वो अच्छी तरह जानता है कि भारत एक शांतिप्रिय ही नहीं बल्कि एक बिखरा हुआ राष्ट्र है।अब भारत को खुली चुनौती मिली है,ललकार मिला है कि तुम हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकते जबकि हम तुम्हारे हजारों सैनिकों और नागरिकों को बिना युद्ध लड़े यूंही मरते रहेंगे,वजह सिर्फ ये की भारत युद्ध वहन नहीं कर सकता क्योंकि वो अमन पसंद है ।

आज बहुत लोगों के मन में भय है,ये सुनने को मिलता है कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं। पर वेे ये भूल जाते है कि आज उन्हें जो इतनी आसानी से अपनी बात रखने का हक मिला है उसके पीछे भी कोई बहुत बड़ी जंग ही रही है। हमें अंग्रेज़ो से आजादी सुभाष चन्द्र बोस जी के अंग्रेज़ो से जंग के हुंकार के बिना नहीं मिलती क्योंकि अहिंसा के रस्ते से भारतवासियों को सिर्फ लाठियां और जेल की सजा ही मिल रही थी। परन्तु दुनिया हमेशा अहिंसा के पुजारी को ही याद करेगी ये अलग बात है।
आज ये कोशिश करना की कुछ लोग नहीं मर जाए और अगले 50-60 सालों तक देश को खून के आंसू रुलाना कहीं ज्यादा बेवकूफी साबित होगी। लोग अपनी भावनाओं,सिद्धांतो और नैतिकताओं में अपना विवेक खो बैठे है।
उनके पास यह देखने को दूरदर्शिता नहीं की इस हरकत से आने वाले 50 सालों में क्या असर पड़ेगा। चाहे परिवार की बात हो या देश की,जब लोग थोड़ी से अप्रियता से बचने के लिए ऐसे दृष्टि नहीं रखते,तो उन्हें अपनी ज़िन्दगी भर और आगे की पीढ़ियों को भी मुसीबत झेलनी पड़ती है। युद्ध अभी निर्मम लग रहा होगा पर अब सिर्फ इसी डर से भारत आतंकवाद से दिल लगाए रहे ये मुमकिन नहीं।

एक आंकड़ों मुताबिक भारत में कुल मिलाकर हर वर्ष काम से कम 800-1000 लोग अतंकवादी हमले में मारे जाते है, यानी कि अगले 50 सालों में 50000 लोग यूहीं बेवजह मारेंगे ही, तो क्यों ना दुश्मन को भी भरपूर चोट किया जाए? उसकी भी प्रगति को रोका जाए, उसका भी खून बहे वाहा भी हाहाकार हो।जो दर्द हर भारतीय झेल रहा वो दर्द पाकिस्तान भी महसूस करे,वो अपनी नापाक इरादों से कब बाज़ आयेगा ये कोई नहीं कह सकता पर हा अंदर ही अंदर टूट जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।।

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