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पहचान (कविता)

khayaalibaate
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तेरी  क्या  पहचान  है

तू  सबसे  क्यों  अनजान  है

तेरी  परेशानी  क्या  है

आखिर  तेरी  कहानी  क्या  है

क्यों  तू  दुनिया  से  नज़रे  फेर  रहा  है

क्यों  खुद  को  खुद  में  ही  घेर  रहा  है

तू  सामने  आता  क्यों  नहीं

सबको  अपनी  इच्छा  सुनाता  क्यों  नहीं

क्या  तू  भी  इस  समाज  से  डरता  है

कोई  फैसला  लेने  से  पहले  सौ  बार  सोचता  है

तू  क्यों  घबराता  है

ये  जीवन  तेरा  है  मौत  भी  तेरी  है

ये  सौहरत  तेरी  है  ये  दौलत  भी  तेरी

हसी  तेरी  है  आंसू  भी  तेरे  हैं

पीछे  खरी  संघर्ष  तेरी  है

आगे  दिख  रही  सफलता  भी  तेरी  है

दूर  खरी  मंज़िल  तेरी  है

साथ  चल  रहा  ये  रास्ता  तेरा  है

प्यार  तेरा  है  नफरत  भी  तेरी  है

हर  एक  हसरत  तेरी  है

तो  फिर  क्यों  रोता   है

आँखे  खुली  रखकर  क्यों  सोता  है

भीड़  में  खड़े  होकर  क्या  मिलेगा

भीड़  से  निकल  आवाज़  उठा

भीड़  तेरे  लिए  होनी  चाहिए

भीड़  के  लिए  तू  नहीं

जाग उठ  खड़ा  हो

फैसला  कर और  उसपे  अड़ा   रह

दुनिया  को  बता

आखिर  तेरी  पहचान  क्या है

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