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” बहु बेटी ना बनी, सास माँ ना बनी “

AGOSH 1
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” बहु बेटी ना बनी, सास माँ ना बनी ”

प्रत्येक स्त्री के जीवन में ऐसा समय एक बार जरुर आता है, जिसमें सास होंने का गर्व और बहु होंने का अभिमान जरुर होता है । सास अपनी बहु को बेटी बनाने में कभी भी कामयाब नहीं होती क्योंकि जो रिश्ते परम्परा पर आधारित होते हैं उनको तोड़ना काफ़ी हद तक कठिन होता है, क्योंकि परम्परावाद के कारण आपसी मतभेद बदल नहीं पाते प्रत्येक नारी को हमेशा याद रखना चाहिए की वह भी कभी सास तो कभी बहू थी, ऐसा सोचें तो ऐसे झगड़ो को जन्म ही ना मिले । मगर एक सास बहू को बेटी के रूप में रखने में हमेशा नाकाम रहती है क्योंकी वह हमेशा याद रखती है कि जब मैं बहु रही और जो कुछ सहा सब कुछ याद रखकर उनका प्रयोग बहू पर करती है । क्योंकि उसे बहु होने का पूर्ण रूप से तजुर्बा होता है । सास हमेशा बहु पर हुक्म चलाना और उसमें कमी इसलिए निकालती है कि उसका वचर्स्व भी बना रहे क्योकि उसने भी 10 या 20 साल तानों की लड़ी स्वयं सही होती है । अब बात यह आती है की नारी ही नारी की दुश्मन क्यों होती है । वह क्यों नहीं समझ पाती की हमारे बीच मधुर संबंध बने रहें ।

देखने में आता है की सास तो मिट्टी की भी बुरी कही जाती है|

मगर ससुर का बुरे होने का प्रमाण कम मिलता है ऐसा क्यूँ , क्योंकि ससुर बहु को बेटी से भी ज्यादा मानता है, क्योंकि बहु, बेटी से भी ज्यादा ससुर की सेवा समय से चाय, रोटी इत्यादि का ध्यान रखती है मगर सास इस ध्यान को नकारात्मक द्रष्टी से देखती है वह सेवा भाव पर ध्यान न देकर केवल कमियों के खुमार पर ध्यान देती है ।

कभी सास अगर ये सोचे की बहु में कमियाँ ना गिनाकर उन कमियों को दूर करने की कोशिश करे तो वर्तमान सास के समझ में परिवर्तन आ सकता है, इसलिए सास बहु के झगड़ो का परित्याग कर देंगी तो स्वंयम ही सारे माहौल में परिवर्तन आ जायेगा ।

सोचने की बात यह है की क्या सारी कमी सास की ही होती है, बहु की कोई कमी नहीं तो यह बात गलत है, क्योकि कभी भी एक हाथ से ताली नहीं बजती जब भी ताली बजेगी तो दोनों हाथों से ही बजेगी एक हाथ से ताली नहीं बज सकती है ।

हमेशा सास ही दोषी हों ये सम्भव नहीं, दोषी कोई भी हो सकता है, सास भी बहु थी इसलिए एक दुसरे पर आरोप और पारिवारिक विघटन पर जोर नहीं देना चाहिये । जब तक ये झगड़े जिनका कोई अर्थ ही ना निकलता हो, बनेंगे तब तक सास बहुओं की कहानी का दी एंड ( The end ) होना ही मुश्किल लगता है ।

गम्भीर पहलू कुछ सास बहु से नाराज होकर झगड़ने लगती है मगर कुछ स्वयं को ही प्रताड़ना देने लगती है वे स्वयं में अन्दर-अन्दर बहु की कमीयों को सोच-सोच कर स्वयं का स्वाथ्य बिगाड़ लेती है और वे भी नहीं सोचती की हमारी चुप्पी हमारा ही नुकसान कर रही है । क्योंकि जब परिवार में एक भी सदस्य चुप रहेगा तब परिवार में ऐसी स्थिती बन जाती है की ना जाने इसे क्या पीड़ा है जिसको यह पारिवारिक सदस्य छुपाये बैठा है। इसलिए जो भी मतभेद हैं, उन्हें मिटाकर परिवार में तालमेल बैठाना परम आवश्यक है । तभी सुखी परिवार का निर्माण हो सकेगा ।

भयानक समस्या :- जब प्रत्येक लड़की अपने लिए सुयोग्य वर ऐसा पसन्द करती है जो सिर्फ मेरा हो । कोई भी नहीं चाहती की मैं सुसुराल जाऊ वह यही चाहती है की मैं तो पिया घर ही जाऊगी ना की सुसुराल क्योंकि पिया का घर होगा तो ना कोई सास न ससुर केवल एकांकी परिवार की चाहत ही बरकरार रहती है । यह एक भयंकर समस्या ही है जिसका निदान करना चाहिये प्रत्येक नारी को अब कम से कम अपने सास-ससुर का सम्मान तो करना ही चाहिए । जिससे उसे अपने आने वाले भविष्य का भी ख्याल भली-भांति रखना चाहिए क्योंकि जो आज बहु है कल उसे सास जरुर बनना है तो क्यों ना ऐसे कार्य किए जाय की सास-बहु के दोनों पहलू बने रहें और रिश्ते सम्मानित रहे ना की कहानी बन कर रह जाय |

एक सामाजिक पहलू के आधार पर हमारी राय तो केवल यही होगी कि एक लड़के को अपने माँ-बाप के बारे में अच्छी सोच बनाकर उनका सम्मान स्वयं और अपनी पत्नी से कराना अपना धर्म समझना चाहिये क्योंकि नर और नारी एक सिक्के के दो पहलू हैं जो हमेशा एक दुसरे के पूरक होते हैं । जब दोनों ही अपना स्वयं का वचर्स्व बनाकर नहीं चलेंगे तो एक दुसरे पर कैसे प्रभाव पड़ेगा अर्थात पत्नी से अपने माँ-बाप को सम्मान दिलाना चाहिए ।

पारिवारिक माहौल की खुशियों को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक परिवारजन को एक सहकारिता पूर्ण सोच का सागर बनाकर सुखी जीवन का निर्माण करना होगा । जिससे हमारे सम्मानित रिश्तों को आदर सम्मान मिल सकें ।

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )

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