Menu
blogid : 12134 postid : 65

अनौखा स्नेह’

AGOSH 1
AGOSH 1
  • 31 Posts
  • 485 Comments

‘ग्रामीण आँचल में एक ऐसा परिवार जिसमें माँ-बाप के अलावा दो पुत्र आनंद और अरविन्द नाम एक राशी के और काम दोनों के अलग-अलग । आनंद का विवाह शहरी लड़की से होता है और अरविंद का ग्रामीण लड़की से होता है । आनंद की पत्नी शहरी होने के कारण शहर की और रुख कर लेती है तथा गाँव को बैकवर्ड बताकर शहर में वापस पहुंच जाती है और साथ में अपने पतिदेव को भी साथ ले जाती है । स्वयं पढ़ी-लिखी होने के कारण शहर में व्यवस्थित होने के पशचात आनंद को भी रोजगार दिला देती है । कुछ दिन समय निरंतर यूँ ही बीतता गया और फिर…….

दो-चार वर्ष व्यतीत हो जाने पर आनंद का गाँव से लगाव जाग्रत होता है जो केवल गाँव में शेखी मारना और सभी को भ्रमित करना कि ” मैं शहर में बड़ा आदमी बन गया हूँ ” इस झूठ से सबसे ज्यादा आकर्षित आनंद की माता ‘ विजय ‘ होती और शेखी का दौर घुमने लगता है, वे सदैव अपने बड़े पुत्र के मोह में छोटे पुत्र की अवहेलना और तानों से छोटे पुत्र को हमेशा परेशान रखती, इनकी देखादेखी राधेलाल, आनंद के पिता अपनी पत्नी के कहे अनुसार चलते और आनंद की सराहना करते। समय बीतता गया और विजय अपने लाडले पुत्र को शहर में रहने के कारण बड़ा आदमी समझकर संयोगवश, उसको घर से दाल, अनाज यहाँ तक की पैसे भी भेजती रहती थी, जिससे उसको सहारा मिल सके । माँ और पुत्र की काफी रंग-भंग मिलती थी । मगर इस बात पर छोटे बेटे की पत्नी नीरज काफी ध्यान देती थी कि उसका पति दिन-रात खेतों पर कार्य करता है और सारे माल को (दाल, अनाज, रुपया)को दूसरा भाई खाये ? घर की खेती व लगान पर ली गयी जमीन में मेहनत नीरज के पति की खाये कोई और नीरज के बर्दास्त के बाहर हो चुका था । क्योंकि सारे दिन-रात करने के बाद दो रूपये भी नहीं हैं ।

अब एक ऐसा दृश्य सामने आता है की अरविन्द अपने बच्चों को स्वयं के विवेक से कुछ भी लाने में असमर्थ रहता वो तो बेचारा इतना काम-धाम करने पर भी माँ-बाप के उपर आश्रित रहता इसी कुरेदना से उसके मस्तिस्क में परेशानीयों ने जन्म लेना शुरु कर दिया, एक दिन अरविन्द बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा । उसका जबड़ा बंद और घबराने की स्थति बन गई तो उसकी परेशानी को सुनकर मैं भी अरविन्द के घर जा पहुंचा क्योकिं वे हमारे कुनबे का एक सदस्य है । मैंने उसको अच्छे डॉक्टर के यहाँ के जाने की इच्छा जाहिर की तो सब परिजन मान गए और डॉक्टर के यहाँ अरविन्द को ले पहुचें । डॉक्टर ने अरविन्द का चेकअप किया और कुछ दवाईयां उसे खिलाई जिससे अरविन्द को काफी फायदा मिला । सयोंगवश मैंने डॉक्टर से पूछा कि डॉक्टर साहब इसे क्या बीमारी हो गई है, जवाब मिला इसे टेंशन है मैंने कहा डॉक्टर साहब इसे टेंशन की दावा दो अन्यथा इसकी पेंशन होने में जरा सी भी देर न लगेगी आखिर रिश्तों में भाई था और दो कन्याओं का बाप मैने उससे अकेले में पूछा की भाई तुझे क्या परेशानी है जो तेरी इतनी भयानक स्थति गई, पहले तो चुप रहा मगर कुछ पल बाद वह बोला क्या पूछ रहे हो मैं अचंभित सा हो गया कि मैने ऐसा क्या पूछ लिया जो यह नाराज हो गया ।

फिर उसने प्रेमपूर्वक बताया कि भाई मेरी टेंशन की स्थति क्यों बनी जिससे मैं बीमार हुआ, मैं तुम्हें बताता हूँ बोला कि मैं दिन भर खेतों पर काम करता हूँ और जो फसल से रूपये आते है उन्हें उन्हें पापा-मम्मी रख लेते हैं, अगर मैं कुछ माँगता हूँ तो यह कहकर टाल देते हैं कि तेरे बच्चों का खर्च तो हम ही चला रहे हैं अब तुम यह बताओ क्या रोटी-पानी ही खर्चा होता है, कम से कम एक मजदूर अब दो या तीन सौ की दिहाड़ी लेकर घर लोटता है, मगर उस रूपये को मेरे माता-पिता, आनंद को प्यार से दे देते हैं । चलो खर्चा भी छोड़ो एक बात सुनो अगर मेरी बीबी के पास अंग वस्त्र ना हो त्तो क्या मै पापा से कहूँ की लाओ पैसा या मेरी पत्नी के लिए एक चोली, कच्छा, बिंदी व पाउडर ले आना । मैने कहा बस चुप हो जा, मै बात करूँगा ।

मैने विजय जो हमारी चाची है उनसे कहा कि चाची इस अरविन्द को कम से कम महीने में दो तीन हज़ार रूपये दे दिया करो जिससे यह अपने बीबी बच्चों का खर्च चला लिया करे या जरुरत का समान ले लिया करे, उस पर चाची ने कहा देख सब समान व खाना पीना इसका हम करते है तो फिर इसे रूपये की क्या जरूरत, मैने कहा ठीक है पर ये तो बतायो की इसका या इसकी बीबी का कभी जलेबी खाने को मन करे तो क्या करोगी बोली मैं तेरे चाचा से मंगवा दूंगी मैने कहा बहुत बढ़िया यह तो बहुत अच्छी बात है जो आप सामान मंगवा देती हो, तो इसकी बहु पर ‘चोली-कछा’ नही है, उन्हें भी चाचा से मंगवा देना यह सुनकर चाची शर्मसार होकर चुप बैठ गयी निगाहें नीचे हो गयी मैंने कहा चाची प्रत्येक इंसान की कुछ ऐसी जरुरत भी होती है जिन्हें वह स्वयम ही पूरा कर सकता है माँ-बाप सा कोई नही । फिर भी चाची ने रुपया देने से चुप्पी साध ली मैंने कहा अच्छा प्यार है अपने बच्चों से एक बच्चा – एक रुपये को तरसे और दूसरा आनन्द जो अपने बच्चों के अलावा कुछ भी घर के लिये नही करता फिर भी उसे रुपया दिया जाता है और जो सारा काम व तुम्हारी सेवा करे उसको दुतकार वाह क्या बात है ।

देखो गाव में कैसा चलन है एक परिवार का बच्चा जो माँ-बाप को छोड़कर बाहर रहता है जिसकी जिम्दारी परिवार से हट जाती है फिर भी उससे कैसा स्नेह ?

आनंद के पास जब भी पैसों या अनाज की किल्लत होती है तो वह गाँव का रुख करता और साथ में अपनी पत्न्नी के उतरे वस्त्र व अपनी पुरानी कमीज साथ में लाता है तो चाचा- चाची खुश हो जाते है, और बदले में उसको घी भरी रोटी खिलाते है और जो घी पशुओ की सेवा करके अरविंद की बहु इक्कठा करती है वो आनद को दे दीया जाता है वाह क्या बात है ऐसे अभागे माँ-बापों की जो अपनी सेवा-भाव करने वालो को घी-दूध देने की जगह दुतकार और जो मौज उड़ा रहे है शहरों में रहकर उनको स्नेहवश घी-दूध । यह सच है कि जो चीज पास होती है उसकी कदर नहीं होती और जो पल भर आकर मिलते है उनको मान सम्मान सराहना ज्यादा मिलती है । दूर के ढोल सुहावने ।

ऐसे माँ-बापों से मेरा नम्र निवेदन यही रहेगा कि जो पास है उससे ही आस रखनी चाहिये।जो दूर है उनसे स्नेह क्यों जो तुम्हारी सेवा भाव से दूर रहता है और पल भर के लिए स्नेह दिखाता है, तो माँ-बाप को भी ऐसी औलाद पर खाली पल दो पल का प्यार लुटाना चाहिए, जैसा औलाद लुटाने आती है। अगर उनसे कहा जाय कि तुम माँ बापों को अपने साथ रखो तो उनका जवाब नकारात्मक ही होगा। क्योकि उनके स्वंयम के खर्च भी नहीं चल पाते, तो वे माँ बाप का खर्च क्या चलायेंगे।

‘फिर मै एक दिन अरविन्द के घर गया और अरविन्द से परामर्श किया कि भाई तू भी कोई ना कोई रोजगार ढूंड ले जिससे तेरे अपने बच्चो का सही लालन-पालन हो सके। कब तक माँ-बाप की पूंछ पकडेगा, अरविन्द बात मान गया और नौकरी ढूंड कर अपने बच्चों का सही लालन पोषण कर रहा है।

मगर चाचा- चाची को अपनी गलती का अहसास पल-पल परेशान करता है। और अरविन्द के काम व सेवा भाव की याद करके बहुत पश्चाताप करते है ।

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply