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उमरिया ढल गयी रे

AGOSH 1
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पिया ढूंडन को चली, उमरिया ढल गयी रे।
कल -कल करती रह गयी ,समय अब टल गया रे ।।

रहे नहीं कजरारे नैना ,रातो को ना आवे चैना ।
अब ना रही कोयल सी बोली ,बातें भी लगती है गोली ।।
ग़जगामनी चाल रही ना ,चिकनी चुपड़ी खाल रही ना ।
मै तो गयी चिन्ता मे सूख ,अब मिट गयी मेरी भूख ।।

पिया ढूंडन को चली, उमरिया ढल गयी रे।
कल -कल करती रह गयी ,समय अब टल गया रे ।।

लाल रंग मेरा पीला पड़ गया ,चंद्रमुखी अब तेज रहा ना ।
काले केश सफेद हो चले ,कमरिया अब ना लचकाये रे ।।
पहले जैसी अदा रही ना ,मर्दों को लुभाने की बात रही ना ।
सब बाते अब नश्बर हो गयी ,रंगरलियो मे, मै तो रह गयी ।।

पिया ढूंडन को चली, उमरिया ढल गयी रे।
कल -कल करती रह गयी ,समय अब टल गया रे ।।

पिया ढूंडन की सोच रही ना ,कीचड़ धूल मे मै तो रिल गयी ।
ब्रद्ध भई अब मेरी काया ,धुमिल हो गयी घर की माया ।।
कौन बने अब मेरा सहारा ,नजर नहीं आता उजियारा ।
समय गया अब लौट ना आवे ,अपनी भूल को मै ही सहूँ रे ।।

पिया ढूंडन को चली, उमरिया ढल गयी रे।
कल -कल करती रह गयी ,समय अब टल गया रे ।।
लेखक डॉoहिमांशुशर्मा(आगोश )

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