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“देश की सरहद से सैनिक का सलाम आया है,
वो नहीं आये मगर उनका पैगाम आया है”।
चिट्ठी में पैग़ाम भरा था, जल्दी आने का तार लिखा था।
पढते-पढते शर्मसार थी अखियाँ, लजा रही माथे की बिंदिया।
कुछ अफसाने कुछ थे बहाने, घर की याद लिखी थी बतियाँ।
ढेर सारी यादों का हँसना रोना, बच्चों से विदाई का कार्ड आया है।
देश की सरहद से—–(1)
कैसे फफक रही है माता, तुम अब हमको मत लिखना।
बहना का कुरुन्दन मत लिखना, मत लिखना बच्चों का हाल।
बस ख़त में तुम इतना लिखना, अपना देश हो गया निहाल।
सारे घर को इस ख़त मे, दर्दों का तूफान आया है
देश की सरहद से —— (2)
लहू देख सिंदूर बह गये, चूड़ी टूट हुई बेहाल।
धधक उठी विरह की ज्वाला, आते जाते बहुत ख्याल।
प्रीत रीत की डोरी टूटी, इसका हुआ बहुत मलाल।
सुर्ख जोड़ा अब नहीं लायेगें, खून से ख़त लहूलुहान आया है।
देश की सरहद से——(3)
सैनिक सम्मान मिलेगा तुझको, हमको जायेंगे सब भूल।
मात्रभूमि पर मिट जाने को, वीर चाट रहे सीमा की धूल।
शहीदों का तिरंगे में सजा, अर्थी का विमान आया है ।
श्रद्यांजली देने नेता डाकिया बनकर, दस लाख का चैक लाया है।
देश की सरहद से——(4)
लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)
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