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‘हिंदी दिवस क्यों घटता जा रहा है हिंदी का महत्त्व,,, इस बात पर बहस करनी ही बेकार है जैसा हम सभी जानते है,कि जब बहस संसद मे ही नहीं हो सकती तो और कहा हो सकती है छोड़ो अब बहस रूपी पुरानी बातें काहे की बहस करनी, और क्या फायदा थोड़ी बहुत इज्ज़त बची है उसको ही तार क्यों करना,,,शुरू करता हूँ ,,
बहुत हुआ हिंदी- हिंदी ,, अरे ,,
हिंदी माँ के गद्दारों की अब भी खामी नहीं गई ,
बाहरी गुलामी चली गई पर भीतरी गुलामी नहीं गई।
भारत मे सबसे ऊँचा स्थान संसद और राष्टपति को दिया जाता है ,मगर जब राष्टपति और संसद दोनों ही हिंदी की हत्या करने पर लगे है और हर बात शपथ से लेकर भाषण तक अंग्रेजी यानि गुलामी का चिन्ह के साथ गर्व महसूस करते हैं तो आम जन की क्या बात है ,,धिक्कार है ऐसे राज नेताओं पर जो हिंदी में परिचर्चा पर भी शर्म महसूस करते हैं, और अपनी राष्ट भाषा की हत्या करने मे लगे हुये हैं बाह रे; अंग्रेजी के गुलामों जो आजाद हिन्दोस्थान मे इस डायन अंग्रेजी का उत्थान और हिंदी माँ का
पतन कर रहे हो |
त्याग कर अंग्रेजी, हिंदी का वैभव बढ़ाना है,
गुलामी का अंग्रेजी है चिन्ह, इसको मिटाना है ।
और इससे ज्यादा क्या कहूँ समझदारों को इशारा ही काफी है,,, आजाद हिन्दोस्थान मे जन्म लिया है ,शहीदों की कुर्बानी, श्रद्धाजली में कम से कम हिंदी का उत्थान करो ।
लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)’
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