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बीज अनीता जी के खाद चातक जी की और और जमीन हमारा दिमाग, उग गया नए ब्लॉग का पेड़….तो सबसे पहले तो आभार अनीता जी चातक जी और दिमाग के कीड़ों का……अब आती है मुद्दे की बात. हमें दो घटनाएँ याद आती हैं एक आँखों देखी और दूसरी जागरण में ही पढ़ी थी कुछ साल पहले. कानपूर में एक डिग्री कालेज है ‘क्राइस्ट चर्च ‘………कहते हैं ये फैशन के लिए कानपूर का प्रवेश द्वार है. शहर के सारे भवरे नयी बहार का रंग देखने यहीं आते थे…..तो साहब एक नए भवरे ने कुछ गुस्ताखी कर दी किसी कली की शान में……फिर क्या था कली के सैंडल रुपी काँटों ने जो खबर ली की कुछ दिनों तक गुलशन में भवरों की गुनगुनाहट ही नहीं गूंजी.
दूसरी घटना किस शहर की है याद नहीं……पूर्वांचल का कोई जिला था शायद…..किसी रसूखदार ने एक महिला से बलात्कार किया…..फिर जब उसकी बेटी को भी शिकार बनाना चाह तो महिला ने हंसिये की सहायता से उसे भविष्य में किसी से भी बलात्कार के काबिल नहीं रखा.
इस मंच पर पहले धारा ३७६ में बदलाव की काफी बात हुई और अब बलात्कार में जिम्मेदारी किसके सर है या नारी कितनी उन्मुक्त हो की बात हो रही है. तो साहब ३०२ में फांसी की सजा के बाद भी क्या हत्याएं रुकी? तो फिर क्या गारंटी है की ३७६ में ऐसे प्राविधान के बाद बलात्कार रुकेगा….? बंधियाकरण से उसकी वासना मर जाएगी……पर ये कोई दंड तो नहीं हुआ…….ऐसा कुछ करना है तो हाईड्रोसील करा दो…..या गनेरिया या सिफलिस और सारे डाक्टरों को ताकीद कर दो की इसका इलाज मत करना……पर सच कहूँ इससे भी फायदा नहीं होने वाला…….पापी को मारने से पाप नहीं ख़तम होता……किसी और के शरीर में जा कर फिर से प्रकट हो जाता है……नतीजा बलात्कार कम तो हो सकता है पर ख़तम नहीं.
मुझे याद है जब हमने इस घर में गृह प्रवेश किया था तो आस पास इक्का दुक्का घर ही थे……और कच्छा बनियान गिरोह का आतंक चरम पर. मेरी आयु १२ वर्ष बहन १० की और माँ….दोपहर में इतने ही प्राणी घर की रखवाली को. पापा ने सभी को बन्दूक चलानी सिखाई और साफ़ ताकीद की ‘ कोई दिवार कूद कर अन्दर आये तो मार देना……बाकि का बाद में देखेंगे’ सभी को पास की पुलिस चौकी का फोन नंबर रटाया…….एक कुत्ता भी पला…..सब मिला कर हमारी तयारी पूरी थी गिरोह के खिलाफ. इस विवरण और ऊपर की दो घटनाओ का जिक्र करने से यही मतलब है की यदि बलात्कार रोकने हैं तो पहले तो लड़कियों को खुद ही लड़ने को तयार होना पड़ेगा……काली मिर्च का स्प्रे या मिर्ची पाउडर साथ में रखना …….. आत्म रक्षा की थोड़ी ट्रेनिंग और पुरुष शरीर के कमजोर हिस्से जान लेना इतना बड़ा काम भी नहीं है की ‘हाय राम ये हमसे कैसे होगा’ कह कर टाल दिया जाये.
जरा सोचिए तो सही की भारत की जिन वीरांगनाओ की गाथा हम आज भी गाते है यदि उनके साथ भी किसी ने ऐसी हिमाकत करने की कोशिश की होती तो क्या वो भी सिर्फ कोने से सट कर आंसू बहा रही होतीं? तभी मै कहता हूँ की यदि किसी के साथ ये बुरी घटना हो ही गयी है तो लड़ो आखरी सांस तक…….नाखून दांत और जो भी प्रयोग कर सकती हो करो……फिर भी नहीं बच पाई तो बलात्कार हो जाने के बाद भी रोने के बजाये पुनः हमला करो…….पुरुष शरीर का सबसे कमजोर अंग सामने है…….ऐसा सबक दो की समाज में जिसके मन में भी ऐसा कुत्सित विचार जन्म ले तो दिमाग पहले ही रोक दे की नहीं मत करो……..कहीं लड़की तुम्हारा वैसा हाल न बना दे. यदि आपको लगता है की सब ज्यादा ही वीभत्स हो गया और आपसे नहीं हो सकता तो नारी हित की बात करना सिर्फ दिखावा है. अंत में राम धारी सिंह जी की एक अमूल्य सलाह…..
” छीनता हो स्वत्व कोई और तू त्याग ताप से काम ले; यह पाप है,
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे, बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है.”
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