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भारतीय परिवार में ‘बाई’ की स्थिति….

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
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मित्रो यदि आप मेरे इस लेख को ब्लॉग समझ कर हलके में ले रहे हैं तो मै आपको पहले ही सावधान कर दूँ. ये विषय स्वयं में इतना गंभीर है की यदि कोई समाज शास्त्री इस विषय पर अपना शोध पत्र लिखता तो अवश्य ही पी एच डी की डिग्री पा जाता. हमारे परिवार में बाई की वी वी आई पी स्थिति की अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं की हमारी धर्मपत्नी अपनी सास के बीमार होने पर कम लेकिन कामवाली के बीमार होने पर ज्यादा परेशान हो जाती हैं. अमूमन किसी तीर्थ स्थान जाने पर गृहणियां अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के साथ साथ कामवाली के अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना करती हैं.यदि आप मेरी इस बात को हसी ठठ्ठे में लेना चाहते हैं और आपको लगता है की आप घर के पी ऍम और पत्नी गृह मंत्री हैं तो एक बार घर में कामवाली को हटाने के चर्चा करके देखिये…..सरकार में मनमोहन जी की हैसियत का वास्तविक अंदाजा आपको घर बैठे ही मिल जायेगा .अरे साहिब ये तो बड़ी बात है कभी कामवाली के काम में कोई नुस्क निकाल कर देखिये……..वो तो बाद में कुछ कहेगी आपकी ‘वो’ जरूर कह देंगी की पहले दूसरी खोज कर लाओ तब कुछ कहना……..
वैसे तो हमारी कामवाली बहुत ही नेक महिला है. सालाना १०० रुपये के इन्क्रीमेंट, होली दिवाली कपडे और सभी तीज त्योहारों पर राशन से ही खुश रहती है. सुबह १० बजे और शाम को ५ बजे आती हैं और काम ख़तम करके सास बहु वाले सीरियल देखती है…..यदि कभी छूट गया तो अगले दिन उनका आँखों देखा हाल हमारी माता जी से सुनती हैं. कभी कभी इस बात पर हमें जरूर से कोसती है की हम परमानेंट नौकरी क्यों नहीं करते? मेरे घर पर रहने से उसके दोपहर के शो छूट जाते हैं .
कामवाली के अलिखित कांट्रेक्ट की कुछ शर्ते हैं जैसे गेट उनके आने के समय बंद न हो. सुबह शाम जब भी वो आयें तो उनका स्वागत चाय की प्याली से किया जाये. चूकी घर पर सुबह के नाश्ते में सभी टोस्ट मक्खन खाते है तो उनके साथ भेदभाव न करते हुए उनको भी वही दिया जाये. मेहमानों के आने पर उनका परिचय नौकरानी के बजाये कुछ और बताया जाये……जैसे की पारिवारिक मित्र, पडोसी या रिश्तेदार.
आपमें से जो भी मेहमानों से परेशान हों उनके लिए हमारी कामवाली वरदान हैं…….मेहमानों की आवक से बर्तनों की संख्या में हुई बढ़त हमारी कामवाली द्वारा मेहमान को कोसने में निकाले गए वाक्यों के समानुपाती होती है. यदि अतिथि रुक गये तो अल्टीमेटम मिल जाता है की घर के लोगो को देख कर पैसे बाँधे थे…….या तो पैसे बढाओ या ऊपर के बर्तन खुद साफ़ करो. शायद कुछ दिनों बाद महीने में मेहमान कितने आ सकते है इसका आकड़ा वो तय करके बता देगी……
मित्रों हमारी कामवाली का मानना है की हर अच्छी चीज़ में दाग जरूरी है अन्यथा नज़र लगने का खतरा बना रहता है. इसीलिए हमारे घर के कप थोड़े बहुत चिटके या किनारों से उखड़े जरूर है. इसके लिए उसका परिवार जिम्मेदार है. जब कभी वो अच्छे मूड में घर से नहीं आती तो हमें इस बात की सूचना किसी कप को पटक कर या तोड़ कर देती है.
पर आज कल कुछ नाराज है क्योकि उनकी कोई सहकर्मी जिनके घर काम करती है; उनके साथ वैष्णव देवी गयी है……तो उसकी बराबरी के लिए हमें भी कहीं जाना पड़ेगा और उनको अपने साथ ले जाना पड़ेगा……..नहीं तो उनके ‘सोसल स्टेटस’ में गिरावट आ जाएगी………दिवाली अभी दूर है और मिटटी पड़े ये फैशन पे की अभी से अल्टीमेटम आ गया है की ‘नेट’ की साड़ी ही लुंगी……
तो साहिब ये है हमारी व्यथा कथा……….पत्नी के ह्रदय में बाई का पहला बच्चो का दूसरा और हमारा तीसरा स्थान है. और हम इसी से हैरान है. और हो भी क्यों न आज कल के ज़माने में पति मिलना आसान है पर बाई मिलना भगवान् मिलने के समान है.

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