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मित्रों आठ महीने बाद मंच पर लिख रहा हूँ तो सभी पुराने और नए बंधुओ को प्रणाम. माँ शारदे आपके की-पैड पर इसी प्रकार विराजती रहें की कामना. तो मित्रों भूमिका के बाद प्रसंग ………… बात कुछ ऐसी है की हमें भी बैंक के लोगो ने परेशान कर कर के एक डी मैट खाता खुलवा दिया है. अब ये बैंक कर्मी भी भगवान की बनायीं अलग ही कृति है ….. पहले लोग उधार वसूलने वालों से डर कर भागते थे अब खाता खुलवाने वालों से भागते है. पर न तो देनदार से कोई बचा है और न ही इनसे बचा जा सकता है. तो साहब जब खाता खुला है तो शेयर भी खरीदने पड़ेंगे….अब हमारे दिमाग के सारे कीड़ो ने कुलबुला कर यही बताया है की ले दे कर एक ही कंपनी है जो फायदे की सौ प्रतिशत गारंटी लेती है और वो है हमारे देश की विधायिका……. चुनाव आयोग का दुर्भाग्य की हमारे जैसा ललित मोदी उनसे दूर है . अब उसके भी कारण हैं पहला तो चुनाव आयोग से हमारी नाराजगी. वो इस बात पर की आचार संहिता के नाम पर कितने लोगो के रोजगार पर लात मार दी उन्होंने……..नेता पहले जितना खाते थे आज उससे दो नहीं; बीस गुना ज्यादा खाते हैं पांच सालों में, पर पहले जितना खर्च करते थे आज उससे बहुत कम खुले रूप में खर्च करते हैं. कितने पेंटर कितने स्पीकर और गाडी वालों के पेट पर लात पड़ी. बिल्ले और टोपी का तो कम ही ख़तम. तो भी जनता को पैसे बनाने का कोई रास्ता चाहिए….बहती गंगा में हम भी हाथ धोयेंगे. हमारी तो बात भाई बिलकुल साफ़ होती है. कल एक पार्टी के नेता जी आये तो हमने साफ़ साफ़ कह दिया की पूरे घर के बारह वोट है , आपसे पहले वाले बीस हजार लगा गए हैं आप पचीस बोलो तो आगे बात करते हैं.
बस यही एक बुरी बात है हममे की बात बात में बात कहा निकल गयी उसका पता नहीं लगता. तो साहब हमारा ये कहना है की सारे नेता लोगो के आई पी ओ निकाल दो, और लोगो को उनके शेयर खरीदने दो फिर वो जितना पैसा बेईमानी से कमाते है उसको ईमान दारी से सबके सामने रखो अब जो जितना कमा सके उसके हिसाब से शेयर की कीमत और हितलाभ जनता को भी मिल जाने हैं.तब आएगा भारत में सच्चा लोकतंत्र . जनता का पैसा जनता से जनता के लिए.यदि ये सब पहले होता को कलमाड़ी और राजा पर कितना कमाया होता हमने . खैर मेरी इस बात को वो बैंक वाले साहब हसी में उड़ा कर चले गए…..लेकिन आप जैसे जौहरी जरूर इस हीरे जैसी बात की कीमत समझ जायेंगे……
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