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अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल

Anuradha Dhyani
Anuradha Dhyani
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हाल ही की अनेक घटनाये किसी को भी विचलित कर सकती है. सच क्या है ये जानने में न भी दिमाग लगाए पर धर्म और अध्यात्म का वो स्वरुप अब नहीं रह गया…..और जब इस जगह भी दुनिया में मिलने वाला पाखण्ड ही है तो क्यों हम अपनी शक्ति और धन व्यर्थ कर रहे हो ?

सभी लोग वैरागी बनने के लिए नहीं आते है पर कुछ लोग ये सोचकर -संसार माया है और अपने परिवार में तो क्या मिलेगा मुक्ति और सेवा की राह में निकल जाते है …. पर जगह- जगह भटक कर क्या मिला…… ये विचारणीय प्रश्न है. वहां भी संसार ही है शायद थोड़ा अलग ….अच्छा या बुरा ये हमारी किस्मत.

इंसान को बुद्धि भी मिली है और इसी कारण वो चाहे किसी भी हाल में हो उसे ये भी पता है कि सही राह क्या है और गलत राह क्या है? जीवन में सभी परेशान होते है, रोते है, बिलखते है…….. कुछ उठते है, कुछ दब जाते है……कुछ मरने को बेहतर मान लेते है और कुछ किसी की शरण में चले जाते है…..कई बार आपको सही मार्गदर्शन भी मिल जाता है पर कितने ऐसे जंजाल में फस जाते है जिससे निकल पाना उनके लिए संभव ही नहीं हो पाता है …..

यदि हम सच में बहुत दुखी है और मार्ग दर्शन नहीं मिल रहा है तो सबसे पहले अपने पास उपलब्ध धार्मिक ग्रन्थ और अच्छी पुस्तकों को पड़ना सीखें. यही हमारे प्रथम गुरु है विशेषकर तब जब आप अपने परिवार से भी कुछ सांझा नहीं करना चाहते हो…..

इन पुराण और महाकाव्यों के पात्र सशक्त भी है पर वहां भी परेशानी है पर हर परेशानी का हल भी है चाहे वो हल त्रिदेव के पास ही हो ….लेकिन उससे सीख तो मिलती है कि हर समस्या का हल है …..इसलिए किसी के सहारे नहीं वरन स्वयं सशक्त बनो.

अब मुझे रामायण का वो प्रसंग याद आ रहा है – हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जा रहे है और मार्ग में दुष्ट कालनेमी घात लगाये बैठा है ताकि वो काम पूरा न कर पाए….हनुमान जी दुविधा में रहे होंगे और कालनेमि की चाल में फँस गये पर जो सच्चा भक्त हो, सामर्थ्यवान हो उसको राह मिल ही जाती है. कालनेमि तो मारा ही गया और काम भी पूरा हुआ………

इसलिए सही राह पर चलों, परिश्रम करों फिर तुम भगवान् या अन्य को मानों या न मानों , ब्रह्माण्ड की सब शक्तियां तुम्हारा साथ देंगी…………..बाकी आपका कर्म और भाग्य ….यही हर कथा और वचनों का सार है….नया क्या ?

ये सभी को मालूम है फिर भी हम भटक ही रहे है चाहे मै हूँ या आप ……

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