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नवरात्री पर-
बहुत चिंतन- मनन होता है हमारे चारो और….पर जैसे ही मै आजकल पूजा करने बैठती तो ऐसा लगता है मानो कोई बोल रहा हो …..पढ़ मत ये स्तोत्र…….सभी तो पढ़ रहे है …………. थोडा शांत बैठ जा…
शांति से बैठ पाना कितना मुश्किल लगता है , ये तब पता चलता है जब सच में शांत होने की इच्छा मन में आती है …… विचचार थोडा कम हुए पर एक अलग विचार आ गया जो हर दिन खो जाता है अपने दैनिक कार्यों को करने में –
हर जगह हर कोई शिकायत करता हुआ ही दिखाई देता है …….और सच में हम अपने चारों ओर की समस्या से परेशान है तो इसका समाधान क्यों नहीं मिल रहा है….सवाल भी और जवाब भी एक साथ आ और जा रहे थे…………………….
अच्छे लोग या सही सोच रखने वाले लोग बिलकुल देवी पुराण में वर्णित देवताओं के सामान हो गये है जो गुणवान हो सकते है पर साधक और साहसी नहीं………..
साहसी और साधक असुर थे सो सम्पदा पा गये … और अंततः देवताओं को भागना पड़ा….और देवलोक असुरों का हो गया….
यदि आज कही हमको लगता है कि गलत आगे बढ़ गया और सच्चे लोगों का ज़माना नहीं रहा तो शायद हम भूल जाते है कि सच के साथ साहस और साधना भी होती है जो नहीं हो पा रही है…
तब क्या उपाय है-
उपाय भी देवी पुराण में ही तो हे-
अब यहाँ तो ब्रह्मा विष्णु महेश नहीं है पर क्या ये तीनो हमारी ही शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा ही तो नहीं है जिसकी शरण हमे लेनी भी पड़ेगी…..
फिर समर्थ बन कर संगठन की शक्ति द्वारा प्रादुर्भाव होगा …………किसका….
देवी दुर्गा का और आज के युग की बात करे तो उस महान प्रयास का जो महिषासुर रुपी समस्याओं जो समाज और देश के लिए घातक है , उनका नाश कर सके………..
जय माँ दुर्गा
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