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भगवान् शिव मेरे भाई : रक्षा बंधन का एक संस्मरण
रक्षाबंधन का पर्व आते ही मन अतीत की यादों में कहीं गुम हो जाता है. वो एक दशक पूर्व की घटना मुझे हमेशा याद दिलाती है कि सच्चे मन से मानो तो भगवान् भी रिश्तें निभाते है. बचपन से ही मन में एक भाव- रक्षा तो भगवान् ही करते है सो हम पहली राखी भगवान् को ही बांधते रहे. सब मुझसे और मेरी बहनों से कहते रहे -अरे ! तुम्हारा भाई नहीं है तो रक्षा बंधन कैसे होगा? हम मन ही मन सोचते -भगवान् ही सच्चा भाई है. थोडा बड़े हुए तो मौसी, मामा, चाचाजी और बुआ के बेटे आते रहे और रक्षाबंधन का त्यौहार हम बहनों के लिए कभी फीका नहीं रहा.
वैसे तो सभी के जीवन की तरह मेरे जीवन में भी विश्वास और आस्था की अनेक घटनाएँ है पर एक विशेष दिन हर रक्षा बंधन पर याद आता है जब मैंने भगवान शिव की मूर्ति के सामने कहा – अब आपको हमेशा राखी बाँधी तो आप मेरे भाई हो, पर आप कहाँ आओगे ? भगवान् भला इंसान के लिए क्यों आने लगा ? फर्क होता है ना. ये बात उन दिनों की है जब मैंने गेट की परीक्षा उत्तीर्ण की और मुझे एम-टेक के लिए जाना था. सबसे अच्छी बात ये थी कि मुझे केवल इंदौर छोड़ कर आना था, बाकी इंतजाम मेरी सहेली करने वाली थी . मेरे पिताजी को ऑफिस से अवकाश नहीं मिल पाया और हमारे परिवार से कभी कोई बाहर नहीं गया था. पहली बार मेरे लिए भी अकेले जाना संभव नहीं था. इससे पूर्व, मै कभी ट्रेन में नहीं गयी थी तो इतना दूर जाना और वो भी इस यात्रा में अनेक पड़ाव थे . सच कहूँ तो मन में थोडा असमंजस और भय तो था. मेरा जाना लगभग रद्द हो गया था. जिंदगी में कभी नहीं लगा था पर उस दिन एक पल को लगा –काश ! मेरा भी भाई होता और मैंने अपने मन की सब भावनाए भगवान् शिव की मूरत के समक्ष कही.
एक घंटा व्यतीत ही हुआ था और मन थोड़ा उदास था . तभी मेरे मौसीजी के बेटे का अचानक फ़ोन आया और बातों- बातों में उनको मैंने बताया कि मै नहीं जा पा रही हूँ. तुरंत वे बोले-चिंता मत कर किसी बात की, तेरे साथ मै चलूँगा. अशोक भैया ने सब इंतजाम किये और मेरी एम् टेक की फीस का दुगुनी धनराशी भी मुझे दी. छुट्टी न होने की वजह से वे तुरंत लौट भी गए और उन्हें मेरी वजह से इतना लम्बा सफ़र तय करना पड़ा. मुझे कुछ नहीं करना पड़ा और सब काम हो गया. एम टेक हो गया, नौकरी मिल गयी…और बहुत कुछ. अशोक भैया के प्रति मेरे मन में हमेशा आदर और प्यार तो था ही पर वो और बढ़ गया क्योंकि जो भी कुछ आज मै हूँ , उसमे उनका योगदान है. हर रक्षा बंधन पर मुझे उनके प्रति कृतज्ञता के भाव तो आतें ही है पर भगवान् शिव की मूर्ती को राखी बांधते हुए तो आसूं निकल ही आते है क्योंकि मुझे विश्वास है कि इस घटना के पीछे केवल वो और उनकी प्रेरणा ही थी . उनसे जब मदद मांगी तो उन्होंने निराश नहीं किया और अशोक भैया को माध्यम बना दिया. ये शायद साधारण घटना मानी जा सकती है पर मेरे लिए अनमोल और जिंदगी को नया रास्ता देने वाली घटना बनी. मेरा विश्वास भगवान् पर और बढ़ गया . सच में –“ भगवान् तो आते है, उन्हें याद किया करना “
अनुराधा नौटियाल ध्यानी
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