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कहानी में विज्ञान – चाँद की चांदनी में

Anuradha Dhyani
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आज सभी लोग नाश्ता करने के बाद घूमने निकल गये. अब वो समुद्र तल से इतनी ऊचाई पर थे कि सूर्य की प्रचंड धूप भी जंगलों के बीच छिप सी गयी थी और यही है पहाड़ों की खूबसूरती जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते है. बस अब वो बात नहीं जो वर्षों पहले थी जब गर्मियों के मौसम में भी पहाड़ के लोग ऊनी वस्त्र पहने दिख जाते थे. पहाड़ की ऐसी खूबसूरती को देखकर तेजस और सिया तो बहुत खुश थे. पहली बार वो दोनों अपने पिता डॉक्टर शिव के साथ अपने ताऊजी राघव के यहाँ गर्मियों की छुट्टियों में आये हुए थे. साथ में उनकी बुआ मीनल और उनका बेटा रोहन भी उनके साथ घुमने आये थे. राघव की बेटी रीना, तेजस और सिया को उस जगह की प्रचलित कहानियों को भी सुना रहे थे. उनका ये पहला अनुभव था जब वो इस सुन्दरता को महसूस भी कर रहे थे और उसका आनंद भी ले रहे थे. वहां से घर लौटते हुए रात हो गयी थी.

घर के भीतर गर्मी और छत्त पर ठंडी हवा चल रही थी इसलिए सभी छत्त पर चल कर बैठ गये. रीना ने बताया कि गर्मी के मौसम में घर के अन्दर गरम भी लगता है और बिजली भी बहुत बार जाती है इसलिए यहाँ तो अधिकतर लोग छत्तपर ही सोते है.

तेजस और सिया के लिए आज पहला मौका था जब वो खुले आकाश के नीचे बैठे थे। सब थके हुए थे इसलिए बिस्तर पर लेट कर ही बातें करने लगे.बिस्तर पर लेटे- लेटे वो चन्द्रमा और तारें देख रहे थे. तेजस सोच रहा था कि शहर में भी यही चाँद –तारें होते है पर वहां ये अच्छे से क्यों नहीं दिखाई देते होंगे. तभी सिया भी ख़ुशी में बोल पड़ी- “ तेजस भैया, इतने सारे स्टार्स…….मैंने कभी नहीं देखे. मुझे स्टार्स (तारे) बहुत पसंद है.

तेजस ने सिया की बातों पर हामी भरते हुए कहा कि चाँद- तारें किसको अच्छे नहीं लगते और आकाश को देखते हुए सवाल भी पूछ डाला- “ रोहन भैया, सूर्य भी एक तारा है और सूर्य का प्रकाश तो कितना ज्यादा होता है. तारें इतने सारे होते है फिर भी उनका प्रकाश चन्द्रमा के प्रकाश से कम क्यों लगता है? ये बात कुछ समझ नहीं आ रही है’’

रोहन जवाब में सभी को अपने प्लेनेटोरियम यात्रा के विषय में बताने लगा. आज से करीब तीन वर्ष पूर्व मै बुआ के घर गया था और वही उनके साथ प्लेनेटोरियम जाने का मौका मिला. बहुत बढिया जगह थी वो और वहां जाकर सोलर सिस्टम (सौरमंडल) को जानने और तारो को देखने की रूचि बढ़ गयी.

तुम्हारी बात सही है कि सूर्य भी एक तारा है और सभी तारों की संरचना और उनका निर्माण लगभग एक समान माना जा सकता है परन्तु ये आकाश में दिखने वाले तारे, सूर्य से भी बहुत दूर है जबकि चंद्रमा धरती के सबसे निकट. इसी कारण इसका प्रकाश हमें अधिक प्रतीत होता है. अब जिन दूरियों की शायद हम कल्पना भी नहीं कर सकते है, उन दूरियों पर ये सूरज, चाँद- तारें है. ऐसी जानकारी मिलती है कि पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की दूरी लगभग ३.८ लाख किलोमीटर है जबकि निकटतम तारा सूर्य धरती से १४९६ लाख किलोमीटर की दूरी पर है. चंद्रमा का प्रकाश धरती पर आने के लिए लगभग १.२५ सेकंड का समय लगता है.

इस बात को सरलता से समझने के लिए तुम सामने सिया को देखो. उसके आस-पास बहुत प्रकाश है और हमारे आस-पास बहुत कम. इसका सीधा सा कारण है- सिया और रीना लाइट (प्रकाश) के समीप ही बैठी है और हम (लाइट) प्रकाश से दूर छत्त के इस कोने में. फिर आकाश में देखते हुए रोहन ने कहना शुरू किया- वैसे तो अभ्यास से कुछ तारो और नक्षत्रमंडल को देखा जा सकता है जैसे कि उत्तर दिशा में ध्रुव तारा जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है. हम लोग कभी- कभी इन चाँद तारों को देखा करते है. वो भी दूरबीन से. हमारे पास एक टेलिस्कोप (दूरबीन) भी है पर वो अभी अपनी विज्ञान की प्रयोगशाला में रखी है.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए रोहन ने टेलिस्कोप के विषय में बताना शुरू किया. सच कहूँ , तो टेलिस्कोप हमारे लिए वरदान से कम नहीं है क्योंकि इसकी सहायता से बहुत दूर की वस्तुओं को उत्तम प्रकार से देखा जा सकता है. क्या तुम्हे पता है कि प्राचीन इतिहास में हमारे अनेक ऋषियों , दार्शनिको एवं विद्वानों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने अभ्यास द्वारा ही सौरमंडल के अनेक रहस्य प्रकट कर लिए थे. आज के युग की बात करें तो मैंने खगोलविद टायको ब्राहे का नाम सुना है जिन्होंने उपलब्ध सीमित साधनों द्वारा इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध करायी और वो भी अपनी आखों के द्वारा ही. उसके बाद आविष्कार हुआ दूरबीन का और इस आविष्कार ने सौरमंडल के रहस्य खोल दिए. ऐसा माना जाता है कि इसका आविष्कार हॉलैंड निवासी हेन्स लिपरेशी ने किया था बाद में इसमें अनेक वैज्ञानिको ने सुधार किये. ऐसी जानकारी मिलती है कि महान खगोल वैज्ञानिक गैलिलियो (१५६४-१६४२)ने सर्वप्रथम दूरबीन का इस्तेमाल करते हुए सौरमंडल के बृहस्पति ग्रह के चार चन्द्रमाओ का पता लगाया। उन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा कॉपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि भी की जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों और चक्कर लगाती हैं। इससे जुडी एक बात ये भी है कि इस बात को उस समय स्वीकार नहीं किया गया और उन्हें दण्डित भी किया गया था. ये अपवर्तक दूरबीन थी अर्थात जो अपवर्तन के सिद्धांत पर कार्य करती है परन्तु इसके चित्र धुंधले होते एवं रंगीन होते थे. बाद में इस समस्या का समाधान किया महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने जिन्होंने पहली परावर्तक दूरबीन का निर्माण किया. अब तो उच्च कोटि की दूरबीनो का निर्माण हो चुका है जिसने सौरमंडल के बहुत से रहस्यों को प्रकट कर दिया है.

तभी राघव और डॉक्टर शिव भी छत्त पर टहलने आ गये. अपने पिता को देखकर सिया उनके पास बैठ गयी और शांत भाव से उसने अपने पिता से पूछा- चाँद पर जाकर कैसा लगता होगा ? डॉक्टर शिव को इसका अनुभव कहाँ था सो उन्होंने सिया को उत्तर देते हुए कहा- “ मै तो वहां गया ही नहीं हूँ. सबसे पहले नील आर्मस्ट्रांग ने १९६९ में चाँद पर अपना पहला कदम रखा और ये एक गौरवशाली क्षण था। उन्होंने और उनके साथियो ने कुछ चित्र लिए और प्रयोग भी किये।बच्चों , चाँद की संरचना पर बात करें तो वहां पर अधिकांशतः केवल धूल और चट्टानें हैं. चाँद कैसे उत्पन्न हुआ होगा, इस विषय में अनेक परिकल्पनाएं दी गयी।एक परिकल्पना के अनुसार ये माना गया कि वर्षो पहले धरती से कोई पिंड टकराया होगा और
फिर चाँद की उत्पत्ति हुई. अभी भी खोज जारी है.

बचपन में हम सभी लोग चंदा मामा कहते आये है. बड़े हुए तो पता चला कि ये एक खगोलीय पिंड है जो रात को आसमान में चमकता हैं और विज्ञान के विद्यार्थी बनने के बाद पता लगा कि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह हैं.

उपग्रह वह पिंड होता है जो ग्रह के चारो और चक्कर लगाता है- यानी चंद्रमा पृथ्वी के चारों और चक्कर लगाता है जैसे हम सब यहाँ गोल घेरे में बैठ जाए और तुम हमारे चारों और चक्कर लगाओ. अब तुम किसी को भी चुन लो जैसे कि मै. समय देख लो और वही से अपना घूमना शुरू करो. फिर वापस मुझ तक घूम कर आओ और फिर समय देख लो. तब तुम्हे पता लग जाएगा कि कितने समय में तुमने एक चक्कर पूरा किया. इसी प्रकार चाँद भी धरती के चारो और चक्कर लगाने में लगभग २७ दिन लगाता है.

चाँद की चांदनी या चाँद से जो हमें प्रकाश मिलता है वो इसका स्वयं का प्रकाश नहीं है. सिया को आश्चर्य में देखकर डॉक्टर शिव ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सच बात ये है कि चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है और फिर धरती पर भेज देता है. तभी तेजस के मन में तुरंत एक सवाल आया और उसने पूछा –“परन्तु सूरज का प्रकाश तो बहुत होता हैं पर चाँद की रोशनी तो बहुत कम है। अब डॉक्टर शिव चुप हो गये क्योंकि वो सोना चाहते थे.

तेजस- “ और बताओ पापा ……’’ . राघव समझ गये थे कि अब सभी सोना चाहते है सो वो मुस्कराते हुए बोले- “तेजस, सूर्य के प्रकाश का नब्बे प्रतिशत से अधिक प्रकाश को चन्द्रमा सोख (अवशोषित) लेता है और बचा हुआ प्रकाश धरती पर भेज देता है इसीलिए चाँद का प्रकाश कम होता है. एक मजेदार बात और बताता हूँ कि यदि तुम आज धरती की जगह चाँद पर होते तो तुम वहां प्रश्न नहीं पूछ पातें और यदि पूछ भी लेते तो तुम्हे जवाब नहीं मिलता.”

रोहन ,रीना और तेजस एक साथ बोल पड़े– “ ऐसा क्यों?”

राघव हँसते हुए- “अरे ! वहां वायुमंडल नहीं होता है और ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है. इसलिए वहां कुछ सुनाई नहीं देगा ’’

रोहन- “अरे मामाजी , ये बात तो आपने मुझे कभी नहीं बतायी।”

राघव- “रोहन , प्रश्नों से प्रश्न और उत्तर निकलते है , इसलिए ही तो मै कहता हूँ कि प्रश्न पूछते रहो.”

सब हँसने लगे और आकाश मंडल में बिखरे चाँद –तारों के नीचे छत्त पर बिछाये बिस्तर पर सो गये.

अनुराधा नौटियाल ध्यानी

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