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महिला सशक्तिकरण: It’s respect what they need

anubhav
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Well frnds its not classroom and I’m not giving any lecture on jurisprudence, it’s just a point of view. महिला सशक्तिकरण, बहुत ही व्यापारिक शब्द बन गया है. बनना भी चाहिए क्यों की बिना व्यापर के किसी भी वस्तु या व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता. इस शब्द का प्रयोग कर बहुत सी महिलाएं आजकल स्वयंसेवी संस्थाएं चला रही हैं ठीक ही है आप चला सकते हैं तो आप भी चलाइए, रोका किसने है. भाई महिलाएं ही तो महिलाओं का उत्थान करेंगी, हाँ पर पहले वे अपना आर्थिक उत्थान जरूर कराती हैं. वैसे भी स्वयंसेवी संस्था है स्वयं का ध्यान तो जरूर रक्खेगी, अर्थात जो उस संस्था की करता धरता हैं उनका.
मेरे एक मित्र ने मुझे बताया की महिलाएं ही महिलाओं की सत्रु होती हैं, पर सत्य यह है की वो आगे आने वाली पीढ़ियों को अन्याय सहने और आत्मसाथ करने का प्रशिक्षण देती हैं. पुरुषों ने विवाह नाम की संस्था भी बना डाली, और उसके नियम और कानून भी स्वयं बना कर यह सुनिश्चित किया की महिलाएं जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत पुरुष आधिपत्य को सहती रहे. पुरुष यदि महिलाओं को आकर्षित कर रहा है तो यह उसका पुरुसत्व है पर यही यदि महिलाएं करें तो उन्हें यह अपशब्दों के योग्य बनाता है. घर से बाहर लोग चाहे जो करे पत्नी यह अधिकार के साथ नहीं पूँछ सकती की देर क्यों हुई. पर पत्नी के देर करने पर पति को स्पष्टीकरण जरूर चाहिए. यही स्थिति बहनों और बेटियों के साथ भी है. अच्छा लगता है की कम से कम हम माँ से यह नहीं पूंछते. हाँ भले ही यह स्थिति सभी घरों में न हो पर अधिकांश घरों में अवश्य है.

जब मैं एल एल बी कर रहा था तब मुझे इस्लाम में बहु विवाह का करण निराश्रित महिलाओं की संख्या अधिक होना बताया गया था पर आज जब महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है तब क्यूँ नहीं हमारे मुस्लिम भाई इस नियम को बदल कर तुर्की की तरह महिलाओं को समानता का अधिकार देने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. हमारे घरों में आज भी वे दोयम दर्जे की नागरिक हैं. सारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून और समझौते सिर्फ किताबों और रिसर्च पपेर्स तक ही सीमित हो गएँ हैं. यह स्थिति सिर्फ हमारे देश में या इस्लामिक देशों में ही नहीं है, यह कमोबेश पश्चिमी देशों में भी है. अंतर सिर्फ शोषण के प्रकार में है, वहां महिलाएं घरों में उतना शोषण का शिकार नहीं होती जितना की बाज़ार द्वारा.

नारी कभी हमारे देश में शक्ति का स्वरूप मानी जाती थी. आज ये लगता है की सायद यह सिर्फ किताबी बातें थी. वर्तमान में अधिकांश महिलाएं शक्तिहीन प्रतीत होती हैं. महिला ही मेरी माँ है,बहन है,सायद पत्नी और बेटी भी हो. सायद व्यक्ति में शक्ति किसी उत्प्रेरक कारक से आती है, हमारे पूर्वजों और सायद आज हमारे लिए भी महिलाएं उत्प्रेरक कारक का कार्य करती हैं, यही कारण है की वे शक्ति का स्वरुप हैं. जिस तरह रासायनिक उत्प्रेरक रासायनिक क्रिया में भाग न लेकर क्रिया की गति को प्रभावित करती है उसी प्रकार महिलाएं हमारी कार्यशीलता और कार्य कुशलता को प्रभावित करती हैं. उन्हें शक्ति का स्वरुप फिर से बनायें. मेरी माँ ही मेरी प्रेरणा या उत्प्रेरक है, और सायद आप की भी हो. महिलाओं को सशक्तिकरण की आवश्यकता नहीं है वे स्वयं शक्ति हैं. उनका सम्मान करें.

मैं यह नहीं कहता की सड़क पर चलने वाली हर महिला आपकी या मेरी बहन है पर किसी की बहन या बेटी अवश्य है. महिलाओं की सुन्दरता का सम्मान करें अपमान नहीं.
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की मंगल कामनाएं.

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