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मैं अपनी इच्छाओं को काबू में रखता हूँ.जितनी ज्यादा इच्छाएं होंगी उतनी ज्यादा अशांति हमारे मन में होगी और जितनी कम इच्छाएं होंगी उतनी कम अशांति होंगी और मन प्रसन्न रहेगा.इसीलिए ऋषि-मुनिजन सदियों से हमें अपनी इच्छाओं को त्याग करने का सन्देश देते आयें है.
हमें ज्यादा इच्छाएं नहीं रखनी चाहिए क्योंकि मेरी राय में हम जितनी कम इच्छाएं रखेंगे उतनी ही जल्दी हम उन्हें पा सकेंगे.यदि ज्यादा इच्छाएं होंगी तो उन्हें पूरा करने में भी ज्यादा समय लगेगा और उन्हें पूरा करने के चक्कर में हमारा मन हमेश अशांत रहेगा.जिससे हम अपना स्वस्थ दृष्टिकोण व परिपक्वता खो देंगें.
मनुष्य के दिमाग में ऐसी सैकड़ों इच्छाएं होती हैं जिनका उनके भविष्य से कोई वास्ता नहीं होता है.वह केवल क्षणिक सुख के लिए होती हैं.
कम या बहुत कम इच्छाएं होने पर हम उन्हें शीघ्र ही प्राप्त कर सकते हैं जिससे हमे सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी और हमारे अन्दर गज़ब का आत्मविश्वास पैदा होगा और हम खुश रहेंगे.इससे हम अपनी स्वस्थ सोच से उन निरर्थक व फालतू की इच्छाओं को त्यागकर सार्थक इच्छाओं को पूरा करने में ध्यान लगा पाएंगे और उन्हें बेहतर ढंग से पूरी कर सकेंगे.
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