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हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को संवैधानिक करार देते हुए समलैंगिंक सम्बन्धों को पुनः अपराध घोषित कर दिया है। अधिकतर लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना करने में लगे हुए हैं लेकिन मेरी राय में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उचित है। भारतीय संस्कृति में सदैव नैतिकता पर बल दिया गया है और अनैतिक कार्यों का पुरज़ोर विरोध किया गया है। समलैंगिंक सम्बन्ध पाश्चात्य संस्कृति की देन है,यह कहना सरासर गलत होगा क्योंकि इसका उल्लेख प्राचीन भारतीय इतिहास में भी रहा है। समलैंगिकता प्राकृतिक नहीं है और इस आधार पर बनाये गए रिश्तें भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकते। इस तरह के सम्बन्ध की उत्पत्ति काम वासनाओं की पूर्ति के लिए कुछ नया करने का ही परिणाम है। निश्चय ही समलैंगिक समुदाय एलजीबीटी के लिए कुछ किया जाना चाहिए लेकिन इसकी आड़ में भारतीय संस्कृति से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। समलैंगिक सम्बन्धों को वैधानिक मानना प्रत्यक्ष रूप से बाल यौन शोषण एवं यौन हिंसा को बढ़ावा देना है। इससे नैतिकता का पतन होगा। भारतीय जनता इसे कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।
कल्पना कीजिये यदि आपको पता चलता है कि आप के घर का कोई सदस्य समलैंगिक है तो निश्चित ही अधिकांश लोग अपना आप खो बैठेंगे और इस बात का विरोध करेंगे। जो लोग इस वक़्त सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध कर रहे हैं उस स्थिति में वे अपने वंश और परवरिश को गाली देने लगेंगें। भारत और अन्य देश जिन्होंने समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता दे रखी है,में कई विभिन्नताएं हैं। यह जरूरी नहीं कि हम समाज की बदलती परिस्थिति के अनुसार ऐसे निर्णय लें जो आने वाली पीढ़ी को गलत सन्देश दे और उन्हें जानबूझकर अनैतिकता की ओर धकेलें। स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता प्रदान करना बिलकुल भी उचित नहीं है। ऐसे में हम सभी को देश की सर्वोच्च अदालत के निर्णय का स्वागत करना चाहिए।
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