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पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है.
दिल को दिए गए ज़ख्मों पर मरहम
लगाने का मन करता है.
कैसे हो सकता है कोई इतना ज़ालिम
कि एक दर्द देने के बाद भी कई दर्द दे
और उसे देख हँसता रहे
पर आज उसी दर्द को पीने का मन करता है
पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है.
हमने तो उसे दी थी आज़ादी अपने
मन का करने की
लेकिन मुझे नहीं थी खबर कि वह
मुझसे ही आज़ाद होना चाहता था
पर आज न चाहकर भी उसे आजाद करने
का मन करता है
पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है.
हर पल वह मेरे ज़ेहन में रहता है
उसकी याद मुझे हर बार सोचने पर
मजबूर कर देती है कि उसके बिना
मैं अधूरा हूँ
पर आज उन्ही यादों को भुलाने का
मन करता है
पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है.
कैसे धड़्केगा मेरा दिल उसके बिना
कैसे चलेगी मेरी सांस उसके बिना
वैसे तो वह जानता है कि मैं उससे
कितना प्यार करता हूँ
पर आज उसे मेरे दिल को चीरकर
दिखाने का मन करता है.
पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है.
उसने देखा था मेरे दिल को करीब से
उसने जाना था मेरी रूह को नज़दीक से
कैसे कहूँ की पहली नज़र में मैंने चाहा
था उसे
पर अब उसे यह सब बताना बेकार
सा लगता है
पता नहीं क्यूँ ,
आज फिर रोने का मन करता है
दिल को दिए गए ज़ख्मों पर मरहम
लगाने का मन करता है.
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