Menu
blogid : 11571 postid : 679396

कूड़ाघर Contest

mere vichar
mere vichar
  • 13 Posts
  • 39 Comments

क्या होता है प्यार ,नहीं पता हमें,
क्या होती है नफरत नहीं पता हमें
पूरा दिन गुज़रता है कचरा उठाने में
पूरी रात बीतती है एक रोटी की आस में
फिर वही सुबह आती है कूड़ों के ढेर से पटी
क्या होता है इन्सान नही पता हमें।

क्या होती है इच्छाएं,नहीं पता हमें,
क्या होती है ललक,नहीं पता हमें,
मलिन बस्तियों में ठिकाना है अपना
गन्दी नालियों की बदबू से वास्ता है अपना
कूड़ा बीनने के बाद भी हमे न किसी से गिला है
क्या होती है शिकायत,नहीं पता हमें।

क्या होता है सम्मान,नहीं पता हमें,
क्या होता है अपमान,नहीं पता हमें,
हर कोई हमसे दूर भागता है,
हर बार फटकार कर झिड़क दिया जाता है
हमे तो कूड़ा उठाना ही जीवन का उद्देश्य
लगता है
क्या होती है आदत,नहीं पता हमें।

क्या होता है शहर,नहीं पता हमें,
क्या होता है महल,नहीं पता हमे,
गलियों में हम करते हैं संघर्ष
कभी-2 तो फुटपाथ पर ही होती
है बसर
अपना तो घर ही कूड़ाघर होता है
क्या होता है देश,नहीं पता हमें।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply