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हाँ! एक स्त्री हूँ मैं Contest

mere vichar
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जन्म लेने से पहले ही मारना चाहा मुझे
जन्म के बाद अपनों ने अकेला छोड़ दिया मुझे
कितनी यातनाएं सहीं है मैंने अपने बचपन में
और अब भी यह सिलसिला जारी है
जब मैं अठरह बरस की होने वाली हूँ
कहने को तो मैं सुन्दर हूँ लेकिन
यही सुंदरता मेरी आज़ादी छीन रही है
हर तरफ इंसान के रूप में भेड़ियों
की नज़रें मेरे बदन को चीर रही हैं
किससे कहूं मैं अपनी शिकायतें और
किससे बाटूँ मैं अपना दर्द
कुछ न करते न कुछ कहते ये दुनियावाले
हाथों में चूड़ी पहनकर ये कहते खुद को मर्द
बाहर की क्या बात करूँ जब माँ की कोख
में मैं न रही सलामत
घऱ-२ में पूज्य और वंश बढ़ने वाली को
ये कहते आफत
देख उठा के इतिहास के पन्नों को
जब-जब यह बात हुई है
नारी के अपमान के कारण हर युग में
महाभारत हुई है
इसीलिए अब न रोऊँगी न चिल्लाउंगी मैं
न रुकूँगी न झुकूंगी मैं
बहुत बन चुकी ममता की मूरत
अब बदलूंगी वहशियों दरिंदों की सूरत
अब हिम्मत दिखाऊँगी मैं
उन चेहरों पर तमाचा मारूंगी मैं
जो मुझे खुली हवा में साँस लेने से रोकते हैं
और तब गर्व से कहूँगी हाँ! एक स्त्री हूँ मैं

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