मन की धुन
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रिम-झिम रिम-झिम
कल-कल कल-कल
बरसे ये मेघा का पानी।
गरजे ये बादलों के संग
उड़ चल लेकर बूंदों को
कर चली हवा को ये मस्तानी।
मन को मोहे है
तन को भिंगोये है
कर चली ये ऋतु बड़ी सुहानी।
रिम-झिम रिम-झिम
कल-कल कल-कल
बरसे ये मेघा का पानी।
भींगे गाने है कई नए सरगम
करना है पानी मे झम-झम
लिये कागज़ की नौका दौड़ें लहरों में बहानी।
रिम-झिम रिम-झिम
कल-कल कल-कल
बरसे ये मेघा का पानी।
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