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अप्रत्याशित व्यवस्था

anupamamishra
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स्मृति एक साधारण लड़की थी- गोल चेहरा,ऊँचा माथा,काले बाल, छोटी आँखें और निस्तेज चेहरा।
सुंदर न होने के कारण उसमें आत्मविश्वास की कमी सी थी।पढ़ाई में अव्वल थी वह।अपने संकोची
स्वभाव के कारण उसकी मित्रता सिर्फ किताबों और लगाव जानवरों से ही था।
दिन निकल चुका था,आसमान भी साफ था,सुबह सुबह पक्षियों के चहचहाने की आवाज तेज हो चुकी थी
स्मृति आज देर तक सो रही थी,रात उसके मन में विचारों की जैसे भीड़ लगी थी,जैसे सड़क पर ट्रैफिक जाम लगा हो।
बहुत सी बातें उसकी मन की शांति को भंग कर रहीं थीं।
वह एक तोता पालना चाहती थी,पक्षियों और जानवरों के प्रति विशेष लगाव होने की वजह से वह उनके साथ समय बिताना चाहती थी पर पिताजी को यह सब पसन्द नहीं था।फिर भी वह जानती थी कि यदि माँ की अनुमति मिल जाये तो ये पर्याप्त है
क्योंकि वह पिताजी से अनुमति प्राप्त कर ही लेंगी,इसका उसे पूर्ण विश्वास था।उसकी गर्मियों की छुट्टियाँ भी हो चुकी थी,अब वह कक्षा छः में जाएगी पर वह सिर्फ दूसरे उधेड़बुन में लगी थी कि माँ से बात कैसे की जाए कि वो मान जाएं।
हर बार वह बस सोचकर रह जाती थी पर इस बार उसने फैसला कर लिया था कि सुबह होते ही वह माँ से ज़रूर बात करेगी।
वह माँ के पास गयी और पूछ ही लिया-माँ क्या मैं एक तोता घर ला सकती हूँ? इतना बोलते ही जैसे उसके मन से सारा बोझ ही उतर गया,अब उत्तर चाहे जो भी मिले प्रश्न पूछना उसके लिए बहुत कठिन था।माँ थोड़ी परेशान दिखीं पर कुछ देर सोचकर
उन्होंने अपना सिर हाँ में हिला दिया।स्मृति को जैसे सब कुछ मिल गया,इतनी जल्दी उसे माँ की हामी की उम्मीद नहीं थी।उसकी आँखों मे चमक और खुशी के आँसू भी छलक आये।
दोपहर का वक़्त था।तोता मेहमान बनकर घर में दाखिल हो चुका था।उसके शरीर पर मांस की झिल्ली ही दिख रही थी पंखों का अता पता नहीं था।छोटी छोटी अधखुली आँखे, लाल चोंच जैसे स्मृति का मन मोह ले रहे थे तभी एक आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की-अरे यह क्या उठा लायी हो उठे तोता तो बुड्ढा और बीमार लगता है माँ ने गुस्से से कहा।
स्मृति डरते हुए बोली-ये तो अभी बच्चा है माँ अभी इसके पंख विकसित नहीं हुए हैं।
माँ झल्लाते हुए बोलीं- अब जो करना है करो,इसे कैसे पालोगी अगर इतना छोटा है? कहीं मर गया तो पाप हमे ही लगेगा।
अब खुशी की जगह चिंता ने ले ली थी ,स्मृति दिन रात बस तोते के बारे में सोचती ,वह घर में ही रहती, बाहर निकलना तो उसने छोड़ ही दिया था।मिट्ठू कुछ खा नहीं पाता था वह उसे रूई के फाहे में दूध की घूटकियाँ देती थी।उसे मिट्ठू नाम दिया गया,मिट्ठू को पुकारने पर वह अपनी ही भाषा में हामी भर देता था।यह स्मृति को गदगद कर देता था और अनोखा सा गर्व होता उसे,क्या गजब का एहसास है यह!
कुछ दिन बीते अब मिट्ठू ढूढ चावल खाने लगा पर वह हमेशा स्मृति का इंतज़ार करता,अगर वह अपने हाँथो से उसे निवाला नहीं खिलाती तो वह भूखा ही रहता पर अन्न को देखता तक नहीं।बड़ा विचित्र से प्रेम पनप गया था दोनों के बीच।
मिट्ठू के पंख आ चुके थे लगभग अब वह अच्छा दिखने लगा था,उसका चटक हरा रंग बहुत प्यारा लगता था उसने स्मृति से कुछ शब्द सीख लिए थे।
मिट्ठू एक टोकरी में सोता पिंजरे का तो उसको कोई अता पता ही था।उनकी दुनिया में सिर्फ प्रेम था।स्मृति घर में जहाँ जहाँ जाती मिट्ठू उसके आगे पीछे लगा रहता।स्मृति का मन अब उदास होने लगा गंभीर चिंता उसे खाये जा रही थी क्योंकि अब स्कूल खुलने वाले थे और अब उसे मिट्ठू से दूर रहना पड़ेगा ऐसे में अगर किसी बिल्ली ने उसे पकड़ कर खा लिया तो क्या
होगा, उसका दिमाग जैसे अब और कुछ सोच ही नहीं पा रहा था
मां उसकी परेशानी से परिचित थीं,उन्होंने एक पिंजरा मंगवाया।पूरे
डेढ़ सौ रूपये का पिंजरा है ये इसमे दोनों तरफ खाना रखने के लिए कटोरी लगी है
पानी के लिए भी पात्र है,पिंजरा बड़ा भी है तो तुम्हारा तोता इसमे बड़े आराम से रह सकेगा और सुरक्षित भी-
माँ ने अपनी समझदारी जताते हुए कहा।
पिंजरा…कैद…नहीं- मैं मिट्ठू को घुटने नहीं दूँगी मुझे उसकी ज़िन्दगी चाहिए मौत नहीं,स्मृति अपनी बात पर अड़ी रही।
“फिर तो ये मरा ही समझो मां ने भौंहे सिकोड़ते हुए कहा,एक न एक दिन ये बिल्ली का आहार बन ही जाएगा।
एक बिल्ली रोज़ हमारे घर के चक्कर लगा रही है।
स्मृति बस सोच में पड़ी थी,उसके मन में हलचल मची थी,क्या व्यवस्था करूँ मैं अपने मिट्ठू के लिए,
बस इसे कैद नही करना चाहती।अगले दिन स्कूल खुलने वाले थे।दिन निकलने से पहले ही स्मृति जाग चुकी थी,चिंता के कारण वह ठीक से सो भी नहीं सकी थी,उसकी आँखें लाल थीं।
सुबह-सुबह बिजली चली गयी ,माँ ने घबराते हुए कहा- अभी तो सारा काम पड़ा है,देर भी हो रही है ये कहते हुए माँ लालटेन ढूंढने के लिए आगे बढ़ी और एक तेज़ आवाज से सकपका गयीं।ये मिट्ठू के ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ थी।
“अरे यह क्या अनर्थ हो गया सुबह-सुबह!
माँ का पैर मिट्ठू के शरीर पर पड़ गया था,उसकी साँसे धीमी होने लगीं। अंधेरा होने से कुछ भी स्पष्ट नही था पर इतना तो तय था कि मिट्ठू कुचला जा चुका है।
स्मृति का चेहरा सफेद पड़ गया उसके होंठ सूखने लगे, “क्या हो गया माँ? वह धीरे से बोली।सच्चाई जानते हुए भी वह प्रार्थना कर रही थी कि उसका संदेह गलत हो।
अचानक बिजली आ गयी ।सच से कब तक मुँह मोड़ा जाता, मिट्ठू का मृत शरीर उसकी आँखों के सामने साफ- साफ दिख रहा था।
वह एकदम चुप थी,आंखें दुख से निढाल और शांत उसने मिट्ठू के मृत शरीर को उठाया ,उसका स्पर्श स्मृति के रोंगटे खड़े कर रहा था पर हिम्मत करके वह अपने घर के पीछे पड़ी खाली जमीन की ओर बढ़ी,उसके कदम जैसे आगे बढ़ ही नहीं पा रहे थे,वह मिट्ठू की तरफ देख नहीं पा रही थी।उसने एक लकड़ी के सहारे एक गड्ढा बनाया और मिट्ठू को सदा के लिए अलविदा कह दिया।
लौटते वक्त उसे यकीन ही हो रहा था कि एक ही पल में ये क्या हो गया,उसका इतना प्यारा साथी अब उसके पास नहीं है।
यह कैसी व्यवस्था कर दी ईश्वर ने – कहते हुए वह स्कूल के लिए तैयार होने लगी।

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