anupamamishra
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कितनी बदल गयी हो तुम,
कहा आईने ने मुझसे
अब वो सूरत ही न रही
जो हुआ करती थी कभी
वो मासूमियत, वो चंचलता
खो सी गयी कहीं ।
अरे कितनी बदल गयी हो तुम
अब तुम पहले जैसी न रही,
कहा उन्होंने मुझसे
हर बात पर कितना जिरह करती हो
पहले हर बात मान लेती थी झट झुकाकर सिर
क्या ढोंग करती थी तुम!
अब वैसी सीधी तो न रही तुम।
लंबा सिंदूर लगाए,गले में मंगलसूत्र
और बिंदी माथे पर सजाये,उन औरतों ने कहा मुझसे
कितनी अकड़ू हो तुम
फेमिनिज़्म की बातें करती हो
खड़ी हो अपने पैरों पर चलो ये तो ठीक है
पर फिर भी औरत ही तो हो तुम।
ऐसे पति का जीवन ताख पर रखती हो
चूड़ी नहीं पहनती,लंबी माँग नहीं भरती हो तुम,
सिर ढँक कर नहीं रहती,दबी ज़बान में नहीं कुछ कहती
कैसी उच्छऋंखल हो चली हो तुम
कहा ये सभी ने।
मैं तो वैसी ही हूँ
जैसी थी पहले
पर अब हूँ मुखर
कभी थी अव्यक्त।
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