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आस्था, विश्वास और तर्क

anuprakash
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इधर कुछ दिनों से विभिन्न धर्मों को लेकर काफी कहा सुनी चल रही है जिसे हम तर्क वितर्क नहीं कह सकते।वह इसलिए कि कहा सुनी मात्र एक दूसरे को नीचा दिखाने का नकारात्मक तरीका है जबकि तर्क वितर्क जानकारी लेन देने की सकारात्मक पहल है। जहाँ तक “धर्म” की बात है, यह एक शब्द नहीं बल्कि व्यापक “भाव” है जिसका व्यापक “भावार्थ”है। भारत मे धर्म जीवन जीने की कला ही नहीं वरन् जीवन से जुड़े हर पहलू का मार्गदर्शक भी है।वैदिक धर्म भारत का मूल है जिसके स्वरूप में समयानुसार बदलाव होते रहे हैं, हिन्दू धर्म इसी की व्यवहारिक परिणिति है। भारत धर्म को लेकर आस्थावान तो रहा है पर जिद्दी नहीं। इसी लिए यहाँ धर्म मे आवश्यक सुधार संशोधन होते रहे हैं। यहाँ तक कि इस देश ने जैन धर्म, बौद्ध धर्म के बिल्कुल नये सिद्धांत को स्वयं जन्म दिया और समय की मांग के अनुसार इसके तौर तरीकों को अपनाया, प्रचारित प्रसारित किया।
अब बात करोड़ों देवी देवताओं की करते हैं जिनकी प्रायः आलोचना होती रहती है। आलोचनाओं का भारत ने “धर्म संसद” और शास्त्रार्थ के माध्यम से सदैव स्वागत किया है। वास्तव में व्यहारिक रूप मे वैदिक धर्म/ हिन्दू धर्म इस हद तक लोकतांत्रिक है कि ईश्वर को भी निरंकुश नहीं होने देता। तीन लोक का स्वामी करोड़ों देवी देवताओं के परामर्श, सहयोग के लिए बाध्य नहीं है किंतु लोकतंत्र को नकार नहीं सकता।यह वृहद संदेश है।
यह सत्य है कि ईश्वर और उसकी संसद का कोई इतिहास नहीं है किंतु वह आदि अनादि अनंत है। ईश्वर हजार दो हजार पहले घटित किसी घटना का परिणाम नहीं है।
हां, हम अवतार में विश्वास करते हैं।हर वह जीव जो विश्व, देश, समाज के कल्याण के लिए समर्पित था, है, रहेगा वही ईश्वर है।

जहाँ तक देवी देवताओं के चित्र और मूर्ति की बात है वह किसी फोटोग्राफर का क्लिक नहीं है किंतु सकारात्मक कल्पना का परिणाम है जिसके पीछे महान चिंतनशील मनीषियों का तार्किक ज्ञान है। किसी बात को एकाग्रता पूर्वक जानने समझने के लिए, गहराई तक पहुंचने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।यह माध्यम पुस्तक भी हो सकती है और चित्र और मूर्ति भी हो सकती। अपने माध्यम के प्रति आस्था विश्वास और सम्मान का होना नितांत आवश्यक है, तभी हम गंतव्य तक पहुंचने का प्रयास कर सकते हैं।
अब यह भारत का भाग्य है (जिसे मैं सौभाग्य या दुर्भाग्य नहीं कहूंगी) कि यहाँ समय ने अन्य धर्मों को स्थापित किया और स्वतंत्र भारत के संविधान ने इन्हें भारत के मूल धर्म के बराबर कानूनी मान सम्मान स्टेटस दिया। यही वैदिक/हिन्दू धर्म के लोकतंत्र का व्यवहारिक स्वरूप है।
अब,ज्वलंत माहौल के परिपेक्ष मे एक बात कहूंगी कि अपने या किसी के भी धर्म का मजाक बनाने, देवी देवताओं के चित्रों, मूर्तियों, पूजास्थलों का अपमान करने से अहम की तुष्टि हो सकती है,किंतु जिन कल्याणकारी भावनाओं से इनका प्रार्दुभाव हुआ है, उसे खत्म नहीं किया जा सकता।ऐसा इसलिए कि ईश्वर आदि अनादि अनंत है और कल्याण के लिए अवतार होते रहे हैं और होते रहेंगे। यह मेरा नितांत अपना सवतंत्र विचार है।🙏

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