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वर्षों बाद बंगाल की राजनीति में परिवर्तन की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। यहां 35 वर्षों से सत्तारुढ़ वाममोर्चा के लालदुर्ग में कंपन शुरू है, लेकिन वह पूरी तरह ढहेगा या आंशिक क्षतिग्रस्त होगा या फिर नए स्वरूप में उभरेगा? यह चुनाव नतीजा घोषित होने के बाद ही पता चल सकेगा। अभी चुनाव के समय जो स्थिति है, उसमें ममता बनर्जी के पीछे भीड़ तो एकत्रित हो रही है, लेकिन बदलाव की बयार में राजनीति की नई फसल काटने के लिए विपक्ष के पास अभी भी अचूक हथियार का अभाव स्पष्ट नजर आ रहा है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और तृणमूल के बीच वामविरोधी जोट बना है, लेकिन वह सशक्त वाममोर्चा का मजबूत विकल्प नहीं दिखता। दोनों दलों के अंदर जोट को लेकर असंतोष है। ऐसे में राज्य की प्रबुद्ध जनता ही अंतिम निर्णय करेगी और उसकी इच्छा पर ही बंगाल में आगे की राजनीतिक दशा-दिशा तय होगी। दुनिया भर में नवजागरण के लिए मशहूर बंगाल की जनता की राजनीतिक चेतना की यह अग्निपरीक्षा की घड़ी है। एक ओर राज्य में वर्षों से वाममोर्चा के नेतृत्व में ठहराव पर शांति का परिवेश है। दूसरी ओर ममता के नेतृत्व में आनेवाले शासन का नया विकल्प है जो अभी अनदेखा और अनजाना है। सत्ता परिवर्तन के बाद खून-खराबे की भी आशंका है जिसके संकेत चुनाव पूर्व ही मिलने लगे हैैं। ऐसी स्थिति में बंगाल की शांतप्रिय प्रबुद्ध जनता जोखिम लेकर राजनीतिक परिवर्तन के पक्ष में राय देगी? यही आज का अहम सवाल है। विपक्ष जितना भी बिखराव की स्थिति में हो यदि जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है तो वह होकर रहेगा। माकपा अंतिम क्षण तक जंग में पराजित हुए बिना हार मानने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भïट्टाचार्य और माकपा राज्य सचिव विमान बोस से लेकर सभी कामरेड अष्टम वाममोर्चा के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए मैदान में डटे हैैं। बंगाल की जनता के साथ कामरेडों का 35 वर्षों का जो अटूट रिश्ता है वह परिवर्तन की हवा के एक झोंके में इतनी आसानी से टूट जाएगा, उन्हें इसकी उम्मीद नहीं है। थोड़ी भूलचूक के कारण जनता कामरेडों से नाराज जरूरी हुई है, लेकिन हो सकता है कि गलतियों के लिए माफी मांग लेने के बाद जनता फिर उन्हें सिर आंखों पर बिठा ले। इसी आशा व उम्मीद के साथ स्वच्छ छवि के बुद्धदेव के नेतृत्व में ही वाममोर्चा ने अपना दांव लगा रखा है।
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