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– अनवर हुसैन
वाममोर्चा ने नोटबंदी के विरोध में सोमवार 28 नवंबर 2016 को 12 घंटे बंगाल बंद का आह्वïान किया था लेकिन वह सफल नहीं हुआ। वाममोर्चा की ओर से तो यहां तक कहा गया था कि पार्टी कैडर बंद को सफल बनाने के लिए सडक़ों पर उतरेंगे और बंगाल बंद आम हड़ताल का रूप लेगा। कैडर तो क्या वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस और माकपा राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा समेत पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता बंद को सफल बनाने के लिए सडक़ पर उतरे। महानगर की सडक़ों पर लाल झंडा लहराते हुए कामरेडों ने जुलूस भी निकाला। लेकिन राज्य भर में बंद का कोई खास असर नहीं दिखा। बंगाल सचल रहा। हाल के दिनों में वामपंथी आंदोलन के इतिहास में यह पहला मौका है कि पार्टी द्वारा आहूत बंद को लोगों ने खारिज कर दिया। बंद और हड़ताल को आंदोलन का अंतिम हथियार माना जाता है। लेकिन वामपंथियों के आंदोलन का अंतिम हथियार भी अब कुंद होने लगा है। वाममोर्चा समेत 18 वामपंथी पार्टियां हड़ताल में शामिल थीं। लेकिन वे भी लोगों पर अपना कुछ प्रभाव नहीं डाल सकी।
अब सवाल उठता है कि बंद को विफल होने के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। वामपंथियों ने नोटबंदी का मुद्दा सीधे आम जनता की परेशानियों से जोड़ दिया है। इसके बावजूद आम जनता उनकी बातों में नहीं आई। सभी अपने-अपने काम पर गए। परिवहन व्यवस्था पूरी तरह सचल थी। दुकान, बाजार और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी खुले रहे। सरकारी दफ्तरों में स्वाभाविक रूप से काम काज हुआ। औद्योगिक इकाइयों में भी श्रमिकों की उपस्थिति देखी गई। ऐसी स्थिति में क्या मान लिया जाए कि अब जनता पर वामपंथियों का कोई प्रभाव नहीं रह गया है। वाममोर्चा में योग्य नेतृत्व का भी अभाव है। हालांकि वाममोर्चा के नेताओं ने बंद को विफल करने के लिए सरकार पर आरोप लगाया है। माकपा के राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा का कहना है कि बंद को सफल बनाने के लिए पार्टी कार्यकर्ता सडक़ पर उतरे थे। लेकिन पुलिस ने शुरूआत में ही उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। सरकारी कर्मचारियों को उपस्थिति अनिवार्य करने के लिए विज्ञप्ति जारी कर दी गई थी। सरका ने काम पर नहीं आने पर कर्मचारियों का वेतन काटने की धमकी दी थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह बंद के विरोध में बयान दिया था उससे लोग डर गए थे। मिश्रा के तर्क में कोई दम नहीं है। यहां तक कि नोटबंदी का विरोध करनेवाली कांग्रेस या अन्य सहयोगी दलों का समर्थन भी वाममोर्चा को नहीं मिला। कांग्रेस ने बंद का समर्थन नहीं कर अपने ढंग से महानगर में विरोध प्रदर्शन किया और आक्रोश दिवस मनाया। नोटबंदी के विरोध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी महानगर में जुलूस निकाल कर आक्रोश दिवस मनाया।
नोटबंदी का विरोध करनेवाली विपक्षी पार्टियों खास कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से आगे निकल जाने की होड़ में वाममोर्चा ने आननफानन में बंगाल बंद बुला दिया लेकिन वह इस कदर विफल होगा इसका अंदाजा कामरेडों को भी नहीं था। उम्मीद है इस घटना से शिक्षा लेकर कामरेड बात-बात पर बंद-हड़ताल करने से बाज आएंगे। वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने बाद में स्वीकार भी किया कि जल्दबाजी में बंद बुलाने का फैसला गलत था। पार्टी इससे शिक्षा लेगी। लेकिन इस मुद्दे पर बंगाल बंद विफल होने का मतलब यह नहीं है कि हड़ताल की जरूरत ही खत्म हो गई। बोस ने भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रशासन का इस्तेमाल कर बंद को विफल कराया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नोटबंदी का फैसला वापस लेने की मांग पर सडक़ पर उतरी हैं। इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री और उनके नेताओं के पास काला धन है। वाममोर्चा आम आदमी की समस्या दूर करने और बाजार में नकदी की स्थिति स्वाभाविक होने तक 500 और 1000 रुपये का नोट चलन में रखने की मांग पर आंदोलन कर रहा है। बोस ने बंगाल बंद विफल हो जाने के बावजूद भी इस मुद्दे पर आंदोलन जारी रखने की घोषणा की। लेकिन नोटबंदी पर वामपंथी आंदोलन का प्रभाव जमीनी स्तर पर कहीं नहीं दिखा।
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