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वायदों का मकड़जाल, आम आदमी बेहाल

अवेयर
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आम समाज सुधार की राह तक कर एक उचित नेता चुनने की उम्मीद करता है. पर शायद ही ऐसा होता हो. क्योंकि सुधार और विकास के बड़े-बड़े वायदे और दावे करने वाले उम्मीदवार चुनावी जीत मिलने के बाद भूल जाते है या कहिए कि वो वायदे घोटालों में बदल जाते हैं.

हाल ही की बात है कि देश के प्रधानमंत्री ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि आज भी देश में 42 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. साथ ही साथ इस तथ्य को पूरे देश के लिए शर्मनाक करार भी दिया. पर बड़े-बड़े विकास के वायदो के साथ दावे कर, सत्ता में आयी कोंग्रेस ने ये शर्म करने लायक रिपोर्ट आने की नोबत ही क्यों आने दी.

साल 2010 से लेकर साल 2011 तक लगातार विकास के नाम पर वायदों की झड़ी लगाई थी. पर नतिजा कुछ नही आया. उधर कर्नाटक में बेल्लारी में अवेध खनन से जुड़े खुलासे के बाद खुलकर विरोध जताने वाली भाजपा भी अपने चरित्र को ढक नही पाई. दूसरी तरफ नजर घुमाने पर हाल ही में आई कैग की रिपोर्ट ने उत्तर-प्रदेश सरकार राज में ग्रामीणं स्वाथ्य मिशन के नाम पर करीब 5 हजार करोड़ की मची लूट की पोल खोल कर रख दी है. जिन पैसों से स्वास्थ्य सुविधा से दूर गरीब तबके को सस्ती स्वाथ्य सुविधा देने की बात की जा रही थी उन पैसों की राजनीतिक गलियारे में कैसे खुली बंदरबाट हो गई, वो स्वाथ्य अधिकारी वीपी सिंह की दीन दहाड़े हत्या की जाचं के दोरान सामने आने लागा था जिसको आज कैग ने अपनी जांच रिपोर्ट में सामने ला दिया है. देखा जाए तो वायदों की झड़ी लगाने वाले मुख्य दलो ने वायदो तो किए पर विकास के नाम पर घोटाले करने में भी कोई कसर नही छोड़ी.

आजकल चुनावी दौर फिर आ गया है. वहीं आम आदमी की उम्मीदें फिर से बनने लगी हैं. और कोई चौकने वाली बात नही होगी कि हर बार की तरहं वायदो की झड़ी भी लगने गली है. लेकिन आज बस इतना सा फर्क है कि आज लगभग सभी पार्टीयों के पास मुद्दे कम पड़ रहै हैं. कहना ना हो कि धर्म के नाम पर हर बार मुद्दो को लेकर चुनाव में उतरने वाली भाजपा अब धर्म को मुद्दा ना बनाकर कोई और मुद्दा खोजने में लगी है पर मुश्किल इस बात की है कि घूम फिरकर आरक्षण को वोट तंत्र बनाया जा रहा है. लगभग सभी मुख्य राजनीतिक दल आरक्षण का मुद्दा लेकर मैदान में कूदे हैं.

इस बार कोंग्रेस की नजर भी उत्तर-प्रदेश के करीब 19 फीसदी मुसलिम वोटो पर टीकी है. इस बात का अंदाजा कोंग्रेस सरकार के द्वारा 1 जनवरी से अल्पसंख्यको के लिए लागू किए गए 4.5 फीसदी आरक्षण को, पिछड़े मुसलिमो के लिए कहने से लगाया जा सकता हैं. और उसके बाद सलमान खुर्शीद के द्वारा अपनी पत्नी के चुनावी प्रचार की सुगबुगाहट में ये कह देना कि अगर कोंग्रेस सत्ता में आई तो अल्पसंख्यको के आरक्षण को बढाकर 9 फीसदी कर दिया जाएगा. इस बात का प्रमाण है कि इस बार कोंग्रेस जो विकास के मुद्दे को हर बार लेकर मैदान में उतरती थी वो अब आरक्षण को लेकर राजनीति कर रही हैं.

साल 2000 से 2011 बीत गया. इन सालों के दौरान चुनाव आए और चले गए. वायदो पर वायदो किए जाते हैं पर उन वायदो से सुविधाओं से वंचित एक बड़े तबके की हालत वैसी ही जस की तस बनी हुई है. और अब 2012 में भी विधानसभा चुनाव सर पर हैं. वायदों का दौर ठीक वैसा ही जारी है जैसा पहले था.

सबसे भद्दा मजाक वायदों के रूप में देश किसानो के साथ किया गया है. उनकी हालत गरीबाई की आग में झुलसती हुई लगातार बिगड़ रही है. इन वायदों के बीच किसानो की दुर्गती होती रही. अगर “न्यूयोर्क स्कूल ओफ लॅा” की किसानो की दूर्दशा और किसान आत्महत्या पर जारी एक रिपोर्ट की माने तो बहुत चौकाने वाले तथ्य सामने आते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2009 के दोरान ही करीब 17,638 किसानो ने आत्महत्या की. जो किसानो की हालत, देश में क्या से क्या होती जा रही है उसको साफ तौर पर बयान कर रही है.

चुनाव आते ही वायदों का पिटारा खोलने वाले इन राजनीति के बादशाह समझने वाले राजनेताओं ने किसानो के साथ एक घिनोना खेल तो खेला ही साथ ही आम समाज को भी फिर से सोचने पर मजबूर किया है. दरअसल आम समाज के पास घूम-फिरकर अपने प्रतिनिधि चुनने के विकल्प वो ही आ रहे है. जनता में आक्रोश भरा हुआ है. भ्रष्टाचार और लगातार विकास के स्तर पर पिछड़ने से जनता उलझन की स्थीति में है. क्योकि राजनीतिक का दायरा दलो के परिवार तक सिमटकर रह रह गया है.

अब देखिए कि केंद्र में सत्ता थामे विकास के मुद्दे के मोर्चे तले चुनावी मैदान में आगाज करने वाली कोंग्रेस ने जहां अधिक आरक्षण देने के साथ-साथ खेती के विकास पर जोर देने को कहा और यहां तक की यूपी को पांच साल में विकसित राज्य बनाने के बड़ी-बड़ी बाते कहीं हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा जो धर्म का राग अलापना छोड़ इस बार सुशासन, विकास और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के अजीबो गरीब-दावे कर रही है. इधर समाजवादी पार्टी ने अपने युवराज अखिलेश यादव को मैदान में उतारकर बड़े-बड़े वायदे कर दिए हैं. समाज को बिजली, छात्रो को किताबे और छात्रावास मुफ्त देने जेसे वादे किए. इसके अलावा मुलायम सिंह ने इस बार यूवाओं को लुभाने के लिए बाहरवी के छात्रो को लेपटोप मुफ्त बाटने का भी वायदा किया हैं. यूपी की सत्ता पर काबिज मायावती ने सर्वागींर्ण विकास करने के अपने उम्मीदो से भरे दावें में समाज से सत्ता सोंपने का आग्रह किया है.

पर इन वायदों और दावों के बीच आम आदमी का हाल आज भी बेहाल है. सुधार का इंतजार तक रही जनता ये बखूबी जानती है कि उसे किसे चुनना है और किसे नही. आखिर ये आज की जनता है, 60-70 के दशक की जनता नही.

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