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ईश्वर वाणी

Meri Rachanaye
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http://mystories028.blogspot.in/2013/04/kavita_30.html

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डर लगता है अब नज़ारे मिलाने में, डर लगता है अब बाहर जाने में, क्या बता मिल जाए मुझे भी कबि कही कोई हवस का पुजारी

डर लगता है अब रिश्ते बनाने में, डर लगता है अब रिश्ते निभाने में, क्या पता कब कौन बन जाए मेरी अस्मत का सौदागरी,

डर लगता है अब अपनों से दर लगता है अब सपनो से, डर लगता है अब हर रिश्ते नातों से, क्या पता कब बन जाए कोई अपना ही मेरी लाज  का लुटेरा  और जिस्म का अभिलाषी,

डर लगता है अब हर करीब आने वाले से, डर  लगता है अब हर मुस्कुराने वाले से, जाने कब बन जाए उसकी आखे मेरे जिस्म की प्यासी,

डर लगता है अब जीवन की हर उमंग से, डर लगता है अब नयी  की हर तरंग से, था कभी  इंतज़ार ज़िन्दगी के किसी मोड़ पे किसी का साथ पाने का, था बस एक ख्वाब उनके साथ हर पल जीने का,

थी बस इतनी से तमन्ना ज़िन्दगी उनकी बाहों में बिताने की, चाहत थी इतनी सी की कभी तो कही मिलेगा जो होगा सिर्फ मेरा, साथ उसका पा कर ख़ुशी रहने की बस ये ही हसरत मैंने बस की थी,

सोचता था मन ये मेरा मिलेगा कही तो मुझे वो जिसका दिल होगा सबसे सछ होगा जो इस जग में सबसे अच्छा,

दुनिया की हर बुराई  से कोशों वो दूर होगा, किसी और के नहीं बस मेरे ही वो करीब होगा, रहे चाहे दुनिया में कही भी वो पर उसके दिल में सिर्फ प्यार तो मेरे लिए ही होगा,

पर जैसे जैसे मुझे आने लगी है समझ, दिखने लगे है इस दुनिया के रंग और नज़र आने लगे है लोग मुझे बेरंग,

आज वक़्त और हालत को समझ कर लगता है डर की न मिल जाए मुझे भी कही मोहब्बत के नाम पे लुटेरा कोई,

डर लगता है न मिल जाए मोहब्बत के नाम पे हवस  का देवता  कोई, क्या पता मुझे भी मिल जाए आशिक के नाम पे कोई व्याभिचारी, डर लगता है अब उस रिश्ते से भी जिसका इंतज़ार था मुझे कभी कही मिलने का, था एक सपना संग उसके एक छोटा सा आशियाना बसाने का,

पर अब डर लगता है न मिल जाए मुझे अब कोई दुराचारी,  डर लगता है उसी से न मेरी शादी हो जो हो किसी का बलात्कार,

डर लगता है अब हर शख्स से, डर लगता है अब हर साए से, डर  लगता है अब खुद से, न बन जाऊ मैं इनका शिकार कही, न मिल जाए ज़िन्दगी में मुझे ये जिस्म के भूखे हवस के पुजारी ये बलात्कारी।।



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