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पिछले हफ्ते अखबार में एक खबर छपी थी कि एक प्रबंधक महोदय अपने विद्यालय को परीक्छा केंद्र बनवाने कि सिफारिश ले के डी.M .ऑफिस तक चले गए थे…..खबर पढ के कुछ आपबीती याद आयी …….
बहुत समय पहले कि बात नहीं है ,बात कुछ साल पहले कि ही है..कि एक बड़े ही pratapi प्रबंधक महोदय हुआ करते हैं ..बड़े दयासागर टाइप के हैं | लम्बी चौड़ी डिग्री बांटूं संस्थाओं का samarajya है दूर के विद्या – अर्थी उन्की संस्थाओं में नामांकित हैं जो उनके प्रताप से सूछ्म शरीर से रजिस्टरों में रोज़ उपस्थित रहते हैं……पूरे छेत्र में k g से ले के पोस्ट ग्रेजुएट तक कि सनद प्रसाद स्वरुप वितरण का हर वर्ष कार्यक्रम आयोजित होता है…..उनकी महिमा वर्णित कर पाने का सामर्थ्य इस तुच्छ कि लेखनी में कहाँ ……??..
जिन लोगों को प्रभु ने दिमाग फिट कर के औलाद बख्शी है उनकी छोड़िये …लेकिन जिनलोगों कि औलादों में भगवान दिमाग फिट करना भूल गए उन्हें यही पे जियारत करनी पड़ती है….
निर्मूल बाबा के दरबार कि तरह ही दुरुस्त फीस पे दुरुस्त ट्रीटमेंट मिल जाता है यहाँ सर्विस बड़ी अच्छी है कोई कमी नहीं है|
ab बात aati है..मेरा पाल कैसे पड़ा ?….महिला टीचर के अभाव के कारन मेरी भी ड्यूटी लगा दी गयी |नयी सर्विस ज्वाइन किये बस दो महीने हुए थे…पहला दिन था …लड़कियों के क्लास में ड्यूटी लगी….पेपर बांटते ही…अविद्या क्वेश्चन बैंक से पेज नंबर बोला जाने लगा..हम सनसना गए अरे ई का हो रहा है?? कही फ्लाइंग स्काउट आया तो?? ३३ कोटि देवता पूज के तो नौकरी पाये…लग रहा है ये भी जायेगी| कही jail भी जाना पड़ा तो?? यही सब सोच रहे थे कि अकस्मात् ह्रदय पे वज्राघात हुआ…एक पुलिस वाले मेरी और आ रहे थे| पुलिस जी को देख प्राण तो सूखा रहे थे लेकिन क्या करें हक्का बक्का उनको देख रहे थे अपनी तरफ आते हुए| कुछ सोचते उससे पहले वो मेरे पास आकर बोले ” bahin जी hath jod रहे हैं इसी कमरवा में हमारी बिटिया है,तनी ध्यान रखियेगा”..
मेरे पीले मुख पर आश्चर्य,और गर्व के भाव तैर गए…. खैर वो निपटे….आधा घंटा बिताए ही..५ किलोमीटर दूर चौराहे पे से खबरिया ने सन्देश बेजा कि गाड़ी आ रही है | धड़ाधड़ पन्ने बोरे में भरे जाने लगे | लग्गू भग्गू भूमिगत हो गए| कमरे साफ़ हुए | कापियां झारी गयीं | सारा माल असबाब पिछवाड़े के द्वार से लेजाकए bhathroom में लॉक कर दिए गए| चेकिंग हुई, सब दुरुस्त था| टीम के जाते ही युद्धः स्तर पे सब दोबारा पहले जैसा बनाया गया|
हम कोने में शांत बैठे रहते थे | बस ड्यूटी के नाम पे हाज़िरी लगा देते और दिन भर डांट खाते…कि काहे मास्टर कि कुर्सी पे बैठे हैं…फिर जब पता चलता कि स्टूडेंट नहीं है टीचर हैं तो बाकि मास्टर लोग अजूबा टाइप देख के चले जाते|…अनुभवी जनों के बीच मेरा कोई काम भी न था|
हमें अपने कॉलेज कि याद हो आयी कि जहाँ एग्जाम में नीचे झुक के कलम भी उठाते थे तो शुक्ल जी ऐसा तकते थे कि लव लैटर उठा रहे हों| फिर अंदर से लगा कि ये ड्यूटी हमसे नहीं होगी| आत्मा भारी हो रही थी| प्रिंसिपल साहब से अनुरोध किया ई सर बड़ी दूर से नाना पड़ता है तो कुछ छूट डॉ दीजिये| और वो मान गए | कुल ३ पाली कि ड्यूटी में परीक्छा निपट गयी|
जब भी उस कॉलेज में ड्यूटी लगी तो कटवा दी,फिर हमारा ट्रान्सफर हो गया| naitik मूल्यांकन वाला पैराग्राफ आप लोग खुद ही सोचिये समझिये| हम तो बस यही सोचते हैं कि नाक रगड़ के पढने वालों कि किस्मत बीमार है…..और उस तीन दिन कि ड्यूटी के पैसों का आज भी इंतज़ार है |
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