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भारत कि सामाजिक व्यवस्था में कुछ बदलाव होना चाहिए| परिवार कि जड़ें बहुत मजबूत होना हालाँकि बहुत अच्छी बात है लेकिन बाध्य कारी हैं जहां व्यक्ति का दम घुटता है| अपनी मर्ज़ी से लाइफ कि दिशा तय करने कि छूट नहीं है…और यदि करनी है तो बहुत संधर्ष करना पड़ता है| सम्बन्ध दोहन का पर्याय बन चुके है..सदा रहे हैं..क्योंकि समाज के दर से उनको तोड़ पाना असम्भव नहीं तो मुश्किल होता है| विशेष रूप से लड़कियों के लिया शादी के बाद …या फिर खुद उनके घर में ही एक बाध्यकारी माहौल होता है| उसे तोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है|
समबन्ध को बनाये रखने कि हर सम्भव कोशिश करते रहना ,सामाजिक दबाव का अधिकतर हिस्सा स्त्रियों के ही भाग में आता है….इससे उनकी साड़ी ऊर्ज़ा इन्ही बातों में ज़ाया होती है… उनके टैलेंट का लाभ देश तक पहुच ही नहीं पता है…जबकि पश्चिमी देशों में ऐसी स्थिति नहीं है…..
भारत का भी समाज यदि थोडा और खुल जाए तो स्त्रियां भी अपना यागदान और भागीदारी अधिक सहजता से दे सकेंगी और देश…समाज के लिए अच्छा होगा…|
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