meri aawaz suno
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पापा!आज आप नहीं हैं तब ये सब बहुत खास सी बात लगती है,की दरवाजे पे गोलगप्पे वाला खड़ा है लेकिन दौड़ के किससे कहे “पापा फुलकी वाला आया है”…कोई हाथ पकड़ के सड़क के बायीं और नहीं चलाता,बस से हाथ बाहर करने पे कोई अंदर नहीं करने को कहता …मेरे हर फॉर्म को भरने के लिए जी जान नहीं लगाता….हर चीज़ है…..बस सर के उपर कुछ खाली सा लगता है……और मैंने बहुत दिनों से कहना भी छोड़ दिया है कोई भी काम पड़ने पे ..”हुआ तो हुआ ..नहीं तो पापा जिंदाबाद…..”…..पापा!…आप फिर नहीं मिलेंगे ?
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