- 26 Posts
- 50 Comments
‘पुत्र’ नाम पर आपत्ति किसलिए?
स्वामी रामदेव की पतंजलि फार्मसी, आयुर्वेदिक दवाइयों का निर्माण करती है!..कई आयुर्वेदिक दवाइयां यहाँ से बनकर मार्केट में आ रही है!दवाइयों के गुणधर्मों को ले कर किसी भी दवाईकी,कहीं से भी कोई शिकायत आई नहीं है!हाल ही में इसी फार्मसी की दवाई ‘ पुत्रजीवक ‘ को ले कर कुछ लोगों ने हंगामा ही खड़ा कर दिया!
यह दवाई नि:संतान महिलाओं को संतति प्रजनन कराने में लाभदायी है!इसके बावजूद गर्भाशय से संबधित बीमारियों के इलाज के तौर पर भी इसका प्रयोग किया जाता है!..आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से महिलाएं इस दवाई का सेवन कर सकती है! आयुर्वेद के ग्रंथों में ‘पुत्रजीवक’ नाम के एक पेड़ का वर्णन किया हुआ है!इसके फल के बीजों का प्रयोग यह दवाई बनाने में किया जाता है! स्वामी रामदेव की फार्मसी में बनाई गई इस दवाई के पैकेट पर साफ़ तौर पर लिखा गया है कि स्त्रियों के वांझपन को दूर करने के लिए एवं गर्भाशय से संबंधित बीमारियों के लिए यह दवाई लाभप्रद है! मै स्वयं आयुर्वेदिक चिकित्सक हूँ इस वजह से इस दवाई के बारे में मेरी पर्याप्त जानकारी है!
…लेकिन कुछ लोगों को आपत्ति इस दवाई के नाम को ले कर है कि इसका नाम ‘पुत्रजीवक’ क्यों है?…आजकल बेटियां बचाओ अभिमान चल रहा है,और समय को देखते हुए सही भी है! लेकिन इस दवाई के नाम का विरोध करने वाले कहतें है कि पुत्र को जीवित किसलिए बताना चाहिए?….सुनकर यह सब हास्यास्पद लगता है!क्या दवाई का नाम ‘पुत्रीजीवक’ होना चाहिए था? फिर क्या आयुर्वेद के ग्रंथों में दिए गए पुत्रजीवक नाम को भी यह लोग बदल डालेंगे? माना कि बेटियां प्यारी है, लेकिन इसके लिए ‘पुत्र’ या ‘बेटा’ नाम से भी परहेज करना चाहिए..यह कहाँ का न्याय?
‘पुत्र’ शब्द संतान के लिए बहुत जगहों पर प्रयुक्त होता है!..जैसे ‘मनुष्य’ शब्द है!जो स्त्री एवं पुरुष..दोनों के लिए ही प्रयुक्त होता है! ;कलाकार’ शब्द भी दोनों के लिए प्रयुक्त होता है..डॉक्टर, वकील,इंजीनियर,व्यवसायी..बहुत से ऐसे शब्द है जो पुरुषवाचक होते हुए भी स्त्रियों के लिए भी प्रयुक्त होते है!…अब ‘मंत्री’ शब्द स्त्री वाचक है ,लेकिन पुरुष क्या ‘मंत्री’ नहीं होते? ‘स्वामी’ शब्द भी स्त्री वाचक है…फिर पुरुष क्यों स्वामी कहलातें है?
…आज ही समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है कि मध्य प्रदेश की सरकार ने ‘ पुत्रजीवक’ दवाई की बिक्री पर रोक लगा दी है…सरकार की और से कहा गया है कि नाम बदलने बाद ही यह दवाई मार्केट में बेची जाएगी!..यह हमारे समाज की मानसिकता है या राजनीति की कोई नई चाल है? …अगर समाज में बेटियों को बढ़ावा देने के लिए बेटों को दुय्यम दर्जा दिया जाता है तो कुछ वर्षों बाद बेटों को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए कटिबद्ध होना पडेगा!…लेकिन निश्चय ही यह समाज की मानसिकता नहीं है!..यह कुछ स्वार्थी राजनेताओं की मानसिकता है जो दवाई का नाम ‘ पुत्रजीवक’ होने पर अपना विरोध प्रकट कर रहे है!
-डॉ.अरुणा कपूर.
Read Comments