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पुस्तक समीक्षा: ‘ठलुए’

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समीक्षा: कहानी संग्रह ‘ठलुए’!
( लेखक- दीपक, प्रकाशक-हिंद पॉकेट बुक्स,जे.४०,जोरबाग लेन, नई दिल्ली ११०००३ मूल्य- रु. १५० }

समीक्षा- डॉ.अरुणा कपूर.

इस कहानी संग्रह’ठलुए’ में पांच कहानियां शामिल है!..लेखक है श्री. दीपक!लेखक का यह प्रथम कहानी संग्रह है!….लेकिन पढते हुए लगता है कि यह लेखक श्री.दीपक ,बहुत मंजे हुए है और चिंतनशील भी है…अनेक विषयों की गहरी जानकारी रखने वाले और अपने विचारों को बेबाकी से समाज के सामने रखने में इन्हें महारथ हासिल है!..वैसे इनकी अनेक कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है!…युवा लेखक है और संप्रति उत्तराखंड सचिवालय मे वरिष्ठ अधिकारी है!…यह कहानी संग्रह ‘हिंद पॉकेट बुक्स ‘ ने प्रकाशित किया है, जो जाना माना और प्रसिद्द प्रकाशन हाउस है!

सभी कहानियों में लेखक ने समाज में पनप रही.. किसी न किसी ऐसी बुराई पर प्रकाश डालने की कोशिश की है, जो न जाने कब खत्म होगी या खत्म होगी भी या नहीं!..सभी कहनियाँ पुरुष प्रधान ही है यह इस कहानी संग्रह ही विशेषता है!

कहानी १.-ठलुए…!..इस कहनी में लल्लन नाम का एक देहाती पुरुष है जो ५१ साल की उम्र का है लेकिन कुंवारा है!..अनपढ़ है..पहलवान है!लल्लन और उसके उस जैसे ही और चार मित्र है जो गांव में सारा दिन खाली घुमतें रहते है!..कोई काम धाम इनके पास करने के लिए नहीं है! लेकिन लल्लन के जीवन में एक मोड ऐसा आता है, जो उसकी आत्मा को झकझोर कर रख देता है!…उसकी अपनी माँ, उसकी भाभी की कोख में पल रही बच्ची की ह्त्या करवाती है! ..ह्त्या का घिनौना काम करने वाला एक अस्पताल है!जहां आए दिन गर्भ में पलने वाली बच्चियों को अबोर्शनद्वारा बाहर निकाल कर गंदे नाले में फैंक दिया जाता है!..लल्लन ..और उसके मित्र यह सब देखते है! लल्लन इस घिनौने कार्य का विरोध करने के लिए अनशन पर बैठ जाता है…अंत में अपने जीवन की आहुति दे देता है…लेकिन परिणाम शून्य में ही आता है..समाज का रवैय्या वैसा ही बना रहता है!…शुरू में कहानी पढते हुए लगता है कि यह कहानी हास्य कथा है, लेकिन आगे चल कर एक गंभीर विषय को अपने अंदर समेटने में सक्षम रही है!

कहानी २-वो तीसरा…!..यह कहानी भी पुरुष प्रधान है!..एक बच्चा जो अनाथाश्रम में पला बढ़ा है, उसके जीवन की कहानी है!..माँ-बाप द्वारा, समाज के डर से इसका त्याग किया जाता है!आगे चल कर यह समाज द्वारा तिरस्कृत किया जाता है!…इसे मित्र के रूप में एक ऐसा बालक मिलता है जिसे माँ-बाप द्वारा इसलिए त्याग दिया जाता है..क्यों कि वह हिजडा या किन्नर है!…इस किन्नर बालक के साथ भी समाज धिनौने तरीके से ही पेश आता है!..दोनों मित्र एक दूसरे के लिए जान छिडकने लगतें है!..कहानी एक रहस्य कथा है इसलिए इसकी चर्चा यहाँ ज्यादा करनी उचित नहीं है!…इस कहानी को पाठक स्वयं पढ़ कर ही अनुभूति ले सकता है कि समाज में कैसी कैसी बुराइयां पनप रही है!

कहानी ३-एक थी नरगिस…!यह कहानी सोमालिया से शुरू होती है…कहानी का नाम, भले ही एक स्त्री के नाम से है…लेकिन यह भी पुरुष प्रधान कहानी है!…सोमालियामें एक भारतीय मालवाहक समंदरी जहाज को लूटा जाता है!…माल लूटने के और कुछ कर्मचारियों को गोलियों से छलनी कर देने बाद बचे हुए कर्मचारियों को बंधक बनाया जाता है!..लूटेरों का एक सरदार है उसका नाम ओबेदुल्लाह है..उसकी बेटी का नाम नरगिस है!..नरगिस भी अपने पिता के साथ ही लूटपाट के धंधे में है..हालाकि वह पढ़ी-लिखी और और समझदार युवा लड़की है!..बंधक बनाए गए कर्मचारियों को छुडाने के लिए बहुत बड़ी रकम की मांग की जाती है वह शुरू में कंपनी द्वारा ठुकराई जाती है लेकिन बंधक बनाया गया एक कर्मचारी अभिनव!…एक ऐसी चाल चलता है कि भारत सरकार को लूटेरों की मांग के अनुसार बड़ी रकम चुकानी ही पड़ती है!…मुलाकातों के दरमियान अभिनव और नरगिस में प्रेम संबध पनपता है!..दोनों एक दूसरे को टूट कर चाहने लागतें है…लेकिन अंजाम ऐसा आता है कि अभिनव के लिए अपना फर्ज, प्रेम से बढ़ कर प्यारा हो जाता है!…कहानी इन दोनों की जुदाई पर खत्म हो जाती है!

कहानी ४-नियती…!यह कहानी है स्त्री द्वारा शोषित एक पुरुष की!..सिर्फ पुरुष ही नहीं…स्त्रियाँ भी अपने निजी स्वार्थ की खातिर पुरुषों का शोषण करती है यह इस कहानी में दर्शाया गया है! अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ लडकियां पुरुष साथियों को कैसे धोखा देती है और अलग अलग पुरुषों का इस्तेमाल समय के चलतें कैसे करती रहती है ..यह सब इस कहानी में वर्णित है!…सुजाता इस कहानी की नायिका है और रवीश नायक है!…मॉडर्न युग की कहानी है!..रवीश और सुजाता पहले लिव्ह इन रिलेशन में साथ रह रहे होते है..बाद में अलग हो जाते है!..सुजाता फिर किसी अमित के साथ रहना शुरू करती है!..फिर अमित का साथ पसंद न आने पर रवीश को ढूँढने निकल पड़ती है!…रवीश मिल जाता है…लेकिन फिर सुजाता रवीश से मुंह मोड लेती है…बेचारा रवीश!,…कहानी नई पीढ़ी के लिए शिक्षाप्रद है!

कहानी ५-फकीरचंद फ़ौजी..! यह कहानी एक फ़ौजी की है जो देश की रक्षा के लिए अपनी पत्नी, बेटा और अन्य सामाजिक रिश्तों से अलग थलग हो जाता है!…अपनी कमाई की जमा पूंजी तो अपने परिवार के लिए खर्च करता है लेकिन हंमेशा परिवार से दूर ही रहता है!…लेखक के अनुसार यह उसकी मजबूरी है!..फकीरचंद की पत्नी बीमारी में चल बसती है!..बेटा रजनीश होस्टल में रह कर पढ़ाई करता है..बी.टेक. है! लेकिन गलत संगत में फंस कर ड्रग स्मगलिंग के धंदे में फंस जाता है!..पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है…और कहानी शुरू होती है!..फकीरचंद सच्चा देशभक्त फ़ौजी है ..पहले वह अपने बेटे को निर्दोष समझकर उसे छुडाने की कोशिश करता है!…अपनी जमापूजी भी वकील के हवाले कर देता है….लेकिन जब बेटे से जेल में मिलता है और उसे पता चलता है कि बेटा सचमुच में गलत काम में लगा हुआ अपराधी है…तो फ़कीरचंद खुद कोर्ट में जा कर कहता है उसके बेटे को जमानत पर न छोड़ा जाए!..सरकारी तंत्र बिगडा हुआ है!…रजनीश के और भी साथी है जो पुलिस को रिश्वत खिलाकर समाज में सरेआम खुले घूम रहे है…उन्हें भी गिरफ्तार किया जाए!..लेकिन समाज में ऐसा कौनसा तंत्र है जो सुधरना चाहता है?…फकीरचंद आखिर अपना फर्ज निभाते हुए ही शहीद हो जाता है!

…बहुत प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानी संग्रह है!…श्री दीपक की मेहनत वाकई प्रशंसनीय है!

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