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राजनीति में..विदूषक का होना जरूरी! (हास्य-व्यंग्य)

prawahit pushp!
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कहीं भी,किसी भी जगह..चाहिए एक विदूषक!

…फिल्मों में, टी.वी.सीरियलों में, सर्कसों में, और राजनीति में भी कॉमेडियंस याने विदूषकों, याने जोकरों का बोलबाला है!..इनके बगैर ऐसे लगता है जैसे बिना मिर्च-मसाले की चटनी! बिना मिर्च-मसाले की उबली हुई दाल!..बिना आलू के समोसे!..फिल्मों में, सर्कसों में और टी.वी.सीरियलों में तो शुरु से ही विदूषकों के लिए एक खास जगह बनी ही होती है!…हालाकि सर्कस तो अब इतिहास जमा हो गए लेकिन विदूषकों का बोलबाला कायम है!…राजनीति पहले इससे अछूती थी!..राजनीति को गंभीर मामला जो माना जाता था!..प्रधान मंत्री से ले कर पार्लियामेंट के चपरासी तक गंभीरता का लबादा लपेटे हुए चलतें-फिरतें नजर आते थे! उनकी शकलें देख कर ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार की याद ताजा हो जाती थी!..वो भी एक ज़माना था!

…फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने संभाली तब राजनीतिज्ञों ने उनकी देखा देखी मेक-अप करना और बालों को डाई करना शुरू कर दिया! हास्य मुद्रा में फोटुएं खिंचवाने का चलन भी यहीं से शुरू हुआ…तभी विदूषकों को लगा कि वे अब आसानी से पार्लियामेंट में शिरकत कर सकतें है!..लेकिन बात बनी नहीं!राजनीति में विदूषकों की एंट्री अभी बंद ही थी!..फिर अटलबिहारी बाजपाई जी जब प्रधान मंत्री बनें…तब राजनीति में साहित्यिकों को एंट्री मिल गई!..बाजपाई जी ने अपने अंदर के कवि को सदन के प्लेटफोर्म पर उतारा !..तब विदूषक ने फिर जोर लगाया ..लेकिन वही ढाक के तीन पात!…विदूषक तो सदन के बाहर ही खड़े रह कर शकलें बनाता रहा!..उसकी एंट्री तब भी नहीं हुई!

…उसके बाद जब मनमोहन सिंह जी को प्रधान मंत्री बनाया गया, तब एक विदूषक ने जोर-जबरदस्ती पार्लियामेंट में एंट्री ले ही ली!..उसने मौका देखा कि मनमोहन जी तो खुद चुप बैठकर तमाशा देखने वालों में से है!…तो मेरी हरकतों को देख कर मुंह तो खोलेंगे नहीं..अपने मंद मंद हास्य को फिजा में ठेलते हुए मेरा स्वागत ही करेंगे..और फिर किसी दूसरे की मजाल है जो मुझे विदूषकी करने से रोकेगा?…और विदूषक कहों,या मसखरा कहों या जोकर कहों…अपने लालू यादव जी इस हास्य भूमिकामें खूब जम गए!..खूब वाह वाही बटोरी..कयास लगाएं जाने लगे कि अगला प्रधानमंत्री लालू यादव ही बनेंगे!

..लेकिन सब उलट-पुलट हो गया!लालू यादव न जाने कहाँ गुम हो गए! नरेन्द्र मोदी जी प्रधान मंत्री बन गए!..लेकिन विदूषक के लिए रखी गई रिझर्व सीट खाली नहीं रही!…राहुल गांधी विदूषक का स्वांग रचा कर उस पर बैठ ही गए!..सब कुशल मंगल हो गया! मनोरंजन बरकरार रहा!..अब राहुल गांधी मजाकिया अंदाज में भाषण देने की कला सीख गए है!..हाँ!..शायद दो महीने छुट्टी पर गए थे, तब विदूषक बनने का क्रेश कोर्स कर लिया हो!…वे अब सफल हास्य कलाकार के रूप में जमते जा रहे है!..कभी मोदी सरकार को सूटेड-बूटेड कह कर हास्य की झडी लगवाते है तो कभी अमेठी जा कर भूतपूर्व सीरियल ‘सास भी कभी बहू थी’ की नायिका स्मृति ईरानी के साथ ‘तू तू, …मैं मैं.’ कर आते है! राहुल गांधी ने नरेद्र मोदी की विदेश यात्राओं पर भी विदूषकी अंदाज में इतना कुछ कह डाला कि सुन कर जनता लोट-पोट हो गई!

…भाई!..मान गए कि राजनीति में भी विदूषकों की चहल पहल कितनी जरूरी है!..लालू जी की देखा देखी राहुल गांधी विदूषक बन बैठे है! जनता को और नेताओं को खूब हंसा रहे है!..लेकिन ये राजनीति है!..लालूजी का जहाँ डंका बजना बंद हो गया….कहीं राहुल गांधी का भी वही हश्र न हो जाए!…ज़रा संभल के राहुल गांधी..ये राजनीति है!
-डा.अरुणा कपूर

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