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समाज को धार्मिक शिक्षा की जरुरत!

prawahit pushp!
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हत्या या आत्महत्या: घोर पाप है!

हिन्दूओं के विविध धार्मिक गर्न्थों का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलेगा कि ये मनुष्य जीवन के लिए कितने उपयुक्त है!…इनमें मनुष्य के जीवन को ईश्वर की अमूल्य और अति सुंदर भेट के रूप में दर्शाया गया है!..प्राणियों को सबसे पहले अनेक योनियों में जन्म लेना पड़ता है…तुच्छ जीव -जंतुओं से ले कर तुच्छ प्राणी.. और फिर उच्च कोटि के प्राणियों की योनी में कई जन्म बिताने के बाद आखिर में मनुष्य योनी में जन्म लेने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त होता है!..इसी वजह से मनुष्य जन्म श्रेष्ठ माना जाता है!…मनुष्य में सोचने समझने की शक्ति, अपने विचार वाणी द्वारा व्यक्त करने की शक्ति, जीवन को अपने अनुरूप बनाने की शक्ति,शिक्षा ग्रहण करने शक्ति, तीव्र स्मरणशक्ति और उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर चलने की शक्ति पाई जाती है!…यह शक्तियां अन्य प्राणियों की तुलना में कहीं अधिक है!…और भी अनेक प्रकार की शक्तियां है जो सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों में ही पाई जाती है!

…हिन्दू धर्म ग्रंथों में जीवन को सुखमय और स्वस्थ बनाने के लिए बहुतसे उपयोगी सुझाव दिए गए है!..उन पर अमल किया जाए तो,कोई भी मनुष्य अपना जीवनकाल सुंदर ढंग से व्यतीत कर सकता है!..धार्मिक ग्रंथों में मन की शांति कायम रखने के लिए ईश्वर उपासना और ईश-स्मरण करने के लिए कहा गया है!..आज हम जिसे मेडिटेशन या ध्यान कहते है…उसके लिए बहुत कुछ इन ग्रंथों में लिखा गया है!..जरुरत है अध्ययन करने की….रामायण, महाभारत,भगवत गीता,पुराण इत्यादि हिंदुओं के धर्म ग्रन्थ समाज को शिक्षित करने का महान कार्य कर रहे है!

…पाप और पुण्य की व्याख्या इन ग्रंथों में वर्णित है!…झूठ बोलना, चोरी करना,किसी को मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचाना,किसी प्राणी का वध करना..यह सब पाप कर्म कहलातें है!…किसीको या अपने आपको भी नुकसान पहुंचाना भी पाप कर्म के अंतर्गत आता है!…पाप कर्मों से बचकर रहने की या पाप कर्मों से दूर रहने की सलाह इन ग्रंथों में दी गई है!..,जीवह्त्या को और आत्महत्या को घोर पाप माना गया है!…जीवन में घोर पाप का आचरण करने वाले मनुष्यों के लिए ईश्वर के पास क्षमा का कोई प्रावधान नहीं है…ऐसे मनुष्यों का जीवन विफल है!..इन्हें मृत्यु के पश्चाद फिर से निकृष्ट योनियों में पैदा होने के लिए भेजा जाता है!..यही नर्क यातना कहलाती है!

..आज के युग में धार्मिक शिक्षा की तरफ ध्यान बहुत कम दिया जा रहा है!..ग्रंथों का अध्ययन और अध्यापन सिर्फ दिखावा रह गया है!…भजन कीर्तन एक मनोरंजन का साधन बनकर रह गया है…ऐसे में जगह जगह पर दंगे फसाद, बम ब्लास्ट,स्त्रियों के साथ अत्याचार या दुर्व्यवहार,बच्चों के साथ कठोरतम व्यवहार..इत्यादि बुरी और निंदनीय घटनाए सामने आ रही है!…मनुष्यों में सहनशीलता का अभाव भी मानसिक अशांति की वजह से ही पैदा होता जा रहा है!सहनशीलता के अभाव में मनुष्य गुस्से पर काबू पाने में असमर्थ हो जाता है… और परिणामतया गलत कर्म करने के लिए प्रेरित होता है.. या तो किसी अन्य की जीवनलीला समाप्त करने पर उतारू हो जाता है या स्वयं की जीवनलीला समाप्त करने जैसा कदम उठाता है! दोनों ही अति निंदनीय कार्य है!

…सिर्फ अनपढ़ गवार या गरीब लोग ही नहीं… स्कूल और कॉलेज की ऊँची डिग्रिया प्राप्त, अच्छी तन्खवाह पाने वाले अमीर स्त्री-पुरुष भी किसी की जान लेने का या अपनी जान अपने हाथों गंवाने का घिनौना कार्य करतें है!…यह सब धार्मिक शिक्षा के अभाव का कारण ही है!…पुरातन समय में ईश्वर के डर से ही सही, ईश्वर मुझे देख रहा है इस सोच के चलते ही सही…मनुष्य कुकर्म या घृणित कर्म करने से रुक जाते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है!

…कोई भी धर्म बुरे कर्मों को करने की शिक्षा नहीं देता!…अगर सभी मनुष्य अपने अपने धर्म ग्रंथों में वर्णित सत्कार्यों को ध्यान में रख कर चलें और दुष्कर्मों का त्याग करें,तभी यह धरती स्वर्ग सामान बन सकती है!

-डॉ.अरुणा कपूर.

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